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हिन्दी जैन भक्ति-काव्य और कवि विक्रमकी तेरहवीं शताब्दीके अन्तमे श्री जिनदत्तसूरि (वि० सं० १२७४ ) के रूपमे एक सामर्थ्यवान् व्यक्तित्वका जन्म हुआ। वे विद्वान् थे और कवि भी। उन्होंने 'चर्चरी' 'कालस्वरूपकुलकम्' और 'उपदेशरसायनरास'का निर्माण किया। 'उपदेश रसायनरास' मे सतगुरुके स्वरूपका विशद वर्णन हुआ है। ये तीनो ही काव्य अपभ्रंश भाषामे लिखे गये हैं । गुरुके सम्बन्धमे एक पद्य इस प्रकार है,
"सुगुरु सुवुच्चइ सच्चउ मासइ पर परवायि-नियरु जसु नासइ । सन्वि जीव जिव अप्पर रक्खइ
मुक्ख-मग्गु पुच्छियउ जु अक्खइ ॥" जिनपद्मसूरि (वि० सं० १२५७ ) ने 'थूलिभद्दफाग' की रचना को थी। आचार्य स्थूलभद्र भद्रबाहु स्वामीके समकालीन थे। उनका निर्वाण वा०नि० सं० २१९ मे हुआ। उनका समाधिस्थल गुलजार बाग, पटना स्टेशनके सामने कमल-हृद्मे बना हुआ है। इस फागकी गणना उत्तमकोटिके काव्यमे की जाती है । इसमें आचार्य स्थूलभद्रकी भक्तिसे सम्बन्धित अनेक सरस पद्योकी रचना हुई है । पावस वर्णनकी कतिपय पंक्तियां देखिए,
"मीयल कोमल सुरहि वाय जिस जिम वायते । माण - मडफ्फर माणणिय तिम तिम नाचते ॥ जिम जिम जलधर भरिय मेह गयणंगणि मलिया।
तिम तिम कामीतरणा नयण नीरहि झल हलिया ॥" नेमिचन्द्र भण्डारी, खरतरगच्छीय जिनेश्वरसूरिके पिता थे। उन्होंने वि० सं० १२५६ के लगभग 'जिनबल्लभसूरि गुणवर्णन' के नामसे एक स्तुति लिखी थी, जो 'जैन ऐतिहासिक काव्य संग्रह में प्रकाशित हो चुकी है। यह स्तुति आचार्य भक्तिका निदर्शन है। इसमे ३५ पद्य है। एक पद्य इस भांति है,
"पणमवि सामि वीर जिणु, गणहर गोयम सामि ।
सुधरम सामिय तुलनि सरणु, जुग प्रधान सिवगामि ॥" महेन्द्रसूरिके शिष्य श्री धर्मसूरि (वि०सं० १२६६) ने 'जम्बूस्वामी चरित्र', 'स्थूलभद्ररास' और 'सुभद्रासती चतुष्पदिका'का निर्माण किया था। तीनोमें क्रमशः ५२, ४७ और ४२ पद्य है। भगवान् महाबीरके निर्वाणके उपरान्त केवल तीन
१. लालचन्द भगवानदास गान्धीने इनका सम्पादन कर, शोधपूर्ण संस्कृत प्रस्तावना
सहित G.O.S.XXXVII में प्रकाशित किया है। २. तीनोंकी हस्तलिखित प्रतियॉ बीकानेरके बृहद् शान भण्डारमें मौजूद हैं।