________________
हिन्दीके आदिकालमें जैन मक्तिपरक कृतियाँ
५०१
धनपाल धक्कड़ ( १०वीं शती ईसवो) को 'भविसयत्तकहा" मे यत्र-तत्र अनेक स्थानोंपर देशभाषाका प्रयोग हुआ है। डॉ. विण्टरनित्म और प्रो. जैकोबी प्रभृति विद्वानोने इस काव्यकथाके रचना कौशलको प्रशंसा की है। कथाका मूलस्वर व्रतरूप होते हुए भी जिनेन्द्रको भक्तिसे सम्बन्धित है। यद्यपि आचार्य हेमचन्द्र ( सन्-१०८८-११७९ ) ने देशी नाममाला (कोश ) का ही निर्माण किया था, किन्तु जहांतक भक्तिका सम्बन्ध है, उनका कोई स्तोत्र या काव्य देशभाषामे लिखा हुआ उपलब्ध नहीं है। विनयचन्दसूरि ( १३वीं शती ईसवी) ने 'नेमिनाथ चउपई' का निर्माण किया था। यह देशभापामे लिखी गयी है। इसमे राजीमतीके वियोगका वर्णन है। नेमिनाथ तीर्थंकर थे, अतः उनसे किया गया प्रेम 'भगद्विषयक' ही कहलायेगा। जब नेमिनाथने पशुओंके करुणाक्रन्दनसे प्रभावित होकर तोरणा-द्वारपर ही वैराग्य ले लिया, तो राजीमती विलाप कर उठी। इस काव्यमें उसके वियोगका चित्र खीचा गया है। कतिपय पंक्तियाँ इस प्रकार हैं,
"मणइ सखी राजल मन रोड, नीठुरु नेमि न अप्पणु होइ । साँचउ सखि वरि गिरि मिज्जंति,
किमइ न मिज्जइ सामलकति ॥" शालिभद्रसूरि (सन् १९८४ ) का 'बाहुबलिरास' एक उत्तम कोटिका काव्य है। उसका सम्बन्ध महाराज बाहुबलिकी वीरता और महत्तासे है। बाहुबलि प्रथम चक्रवर्ती थे। दोनों भाइयों में साम्राज्यको लेकर यद्ध हमआ था। भरतको पराजित करनेके उपरान्त बाहुबलिने वैराग्य ले लिया। उन्हींकी भक्तिमें इस काव्यको रचना हुई है। भाषा दुरुह अपभ्रंश है, कहीं देशभाषाके दर्शन नहीं होते।
१. इसका प्रकाशन सन् १९१८ में प्रो० जैकोबीके सम्पादनमें म्यूनिकसे हुआ था।
बादमें डॉ० पी०डी० गुणेने इसका सम्पादन किया और सेन् १९२३ में G.0.
s.xx. में इसे प्रकाशित किया। दोनोंकी भूमिकाएँ विद्वत्तापूर्ण हैं। २. देशी नाममाला जर्मन विद्वान् पिशेल-द्वारा सम्पादित होकर B.S.S.XVII में
दो बार प्रकाशित हो चुकी है। ३. प्राचीन गुर्जरकाव्य संग्रहमें इसका प्रकाशन सन् १९२० में हुआ है। ४. श्री मुनि जिनविजयने 'बाहुबलिरासे' पर भारतीय विद्या, वर्ष २, अंक में प्रकाश
डाला है। ६४