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________________ ४९४ हिन्दी जैन भक्ति-काव्य और कवि भगवान्के नाममें पापियोंको तारनेकी शक्तिका उल्लेख भूधरदासने भी किया है। उनका कथन है कि भगवान्का नाम लेनेसे अंजन-से चोर और कीचक-से अभिमानी भी तर गये है, "म्हें तो थाकी आज महिमा जानी, अब लों नहिं उर आनी ।। काहे को मव वन में भ्रमते, क्यों होते दुख दानी। नाम प्रताप तिरे अंजन से, कीचक से अभिमानी॥" तुलसीदासने रामके नामको भव-बेगारसे छूटनेका उत्तम साधन माना है, "राम कहत चलु, राम कहत चलु, राम कहत चलु भाई रे। नाहिं तौ भव-बेगारि महं परिहौ छूटत अति कठिनाई रे॥" एक दूसरे स्थानपर उन्होंने कहा कि भगवान्के नामसे कोई चिन्ता नहीं रहती, और मोक्षलोक प्राप्त हो जाता है, "तुलसी जग जानियत नाम ते, सोच न कूच मुकाम को।" जैन कवि मनरामने 'मनरामविलास' में लिखा है कि 'अरिहंत' का नाम आठ कर्म रूपी दुश्मनोंको नष्ट कर देता है और मोक्ष प्रदान करता है, "करमादिक अरिन को हरै अरिहंत नाम, सिद्ध करै काज सब सिद्ध को मजन है ॥" भूघरदासका कथन है कि यदि मनुष्य-जीवनसे छुटकारा पाना है, तो भगवान् नेमीश्वरका नाम रटो, "है अजौं एक उपाय भूधर, छटै जो नर धार है । रटि नाम राजुल मन को, पशु बंध छोड़न हार रे ॥" भगवान्का नाम केवल भक्ति ही नहीं, अपितु ज्ञान भी प्रदान करता है। सूरदासने लिखा है, १. भूधरविलास, कलकत्ता, ४३वाँ पद, पृ० २४ । २. विनयपत्रिका, उत्तरार्द्ध, १८६वाँ पद, पृ० ३६६ । ३. वही, १५६वाँ पद, पृ० ३०५ । ४. मनराम, मनराम विलास, मन्दिर ठोलियान, जयपुरकी हस्तलिखित प्रति। ५. भूधरविलास, कलकत्ता, ५वा पद, पृ०४।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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