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________________ हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि पदमे लिखा है कि जैसे बादीगरका बन्दर, बादीगरके कहने पर बारम्वार नाचता है, वैसे ही यह जीव मायाके आदेशपर नृत्य करता है । कवि रूपचन्दने 'अध्यात्म सवैया' में कहा है कि हे मूढ जीव ! महामाया के वशीभूत होकर तू ब्रह्मके सम्मुख गमन नही कर पाता । महात्मा आनन्दघनने 'आनन्दघनबहत्तरी' मे लिखा है कि हे चेतन ! तुम मायाके बसमे हो गये हो, अतः अपने ही हृदयमें विराजमान समतारूपी आनन्दको प्राप्त नहीं करते। द्यानतरायने मायाममतासे पीछा छुड़ाकर इस बावरे मनको अरिहंतका स्मरण करने के लिए कहा है, २४ "अरहंत सुमर मन बावरे । ख्याति लाभ पूजा तजि भाई, अन्तर प्रभु लौ लाव रे ॥ युवती तन धन सुत मित परिजन, गज तुरंग रथ चात्र रे । यह संसार सुपन की माया, आँख मींच दिखराव रे ॥ ध्याय- ध्याय रे अब है दाव रे, नाहीं मंगल गाव रे । धानत बहुत कहाँ लौं कहिए, फेर न कछू उपाव रे ॥” बावनी और शतक आदिमें जैन भक्ति मध्यकालीन हिन्दीके जैन भक्त कवियोने बावनी, शतक, बत्तीसी और छत्तीसी आदि रूपोंमें अपने भाव अभिव्यक्त किये हैं । जैनोंके संस्कृत- प्राकृत साहित्य में ऐसी रचनाएँ उपलब्ध नही हैं । अजैन हिन्दी कवियों में भी इनका प्रणयन अल्प ही हुआ है । बारहखड़ीके अक्षरोंको लेकर सीमित पद्योमे काव्य-रचना करना हिन्दीके जैन कवियोंकी अपनी विशेषता है । प० दौलतरामका लिखा हुआ 'अध्यात्म बारहखड़ी' नामका एक बृहद् काव्य ग्रन्थ, दि० जैन मन्दिर बड़ोतके प्राचीन शास्त्र भण्डारमे उपलब्ध हुआ है । यह ग्रन्थ आठ अध्यायोमे विभक्त है । इसमें लगभग आठ हजार पद्य है । बारहखड़ी के प्रत्येक अक्षरको लेकर लिखा गया इतना बड़ा मुक्तक काव्य जैन हिन्दीको अनन्य देन है । बारहखड़ीमें बावन अक्षर होते हैं । अधिकाश रूपमे प्रत्येक अक्षरको लेकर एक-एक पद्यकी रचना कर १. महावीरजी श्रतिशयक्षेत्रका एक प्राचीन गुटका, 'मोहफंदबसि नाचीयो' पद देखिए । २. " मूढ महामायामई को न ब्रह्म सनमुख गमन", अध्यात्मसवैया, मन्दिर बधी - चन्द, जयपुरकी हस्तलिखित प्रति वा पद्य । ३. आनन्दघनबहत्तरी, परमश्रुतप्रभावकमण्डल, बम्बई, १२वाँ पद |
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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