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________________ तुलनात्मक विवेचन १७९ सबद की, रह्या कधीराठौर ॥" जायसीने प्रेम-बाणके घावको अत्यधिक दुःखदायी माना है। जिसके लगता है, वह न तो मर हो पाता है और न जीवित ही रहता है । बड़ी बेचैनी सहता है। परमात्माके विरहमे 'खिलवाड' नहीं आ सकती, किन्तु फिर भी निर्गुनिए सन्तोकी अपेक्षा जैन कवियोमें संवेदनात्मक अनुभूति अधिक है । कबीरके 'विरह भुजंगम पेति कर किया कलेजे घाव, साधु अंग न मोडही, ज्यों भाव त्यों खाय ।' से आनन्दघनका पीया वीन सुध बुध खूदी हो, विरह भुअंग निवासमे, मेरी सेजड़ी बूंदो हो। अधिक हृदयके समीप है। इसी भांति कबीरके 'जैसे जल बिन मीन तलफै, ऐसे हरि बिनु मेरा जिया कलपै।" से बनारसीदासके 'मै विरहिन पिय के आधीन, यो तलफौ ज्यो जल बिन मीन।' में अधिक सवलता है। जैन और अजैन सन्त ___ अधिकांशतया अजैन सन्त निम्नवर्गमे उत्पन्न हुए थे, जब कि जैन सन्तोंका जन्म और पालन-पोषण उच्च कुलमे हुआ था। अतः जैन सन्तोंके द्वारा जातिपातिके खण्डनमे अधिक स्वाभाविकता थी। उन्होंने जन्मतः उच्चगोत्र पाकर भी समताका उपदेश दिया, यह उस समयके उच्चकुलीन 'अहं के प्रति एक प्रबल चुनौती थी। जैन सन्त पढ़े-लिखे थे, उन्होने जैन साहित्यका विधिवत् अध्ययन किया था, किन्तु निर्भीकता दोनोंमें समान थी। ___ अजैन सन्त आजीविकाके लिए कुछ-न-कुछ उद्योग अवश्य करते थे, किन्तु अपभ्रंशके जैन सन्त मुनि या साधु थे। जैन हिन्दीका सन्त-साहित्य रचनेवालोंमें बनारसीदास, द्यानतराय, भूधरदास, भगवतीदास प्रभृति व्यापारादिका कार्य करते थे, किन्तु कुछ ऐसे भी थे, जिन्होंने मुनिपद धारण किया था। उनमें 'सूरि', 'उपाध्याय' और 'भट्टारक' अधिक थे। मुनि विनयचन्द, भट्टारक शुभचन्द, यशोविजय उपाध्याय, महात्मा मानन्दधन और मुनि ब्रह्मगुलाल प्रमुख थे । १. कवीर ग्रन्थावली, चतुर्थ संस्करण, सबद को अंग, प्वाँ दोहा, पृ० ६४ । २. प्रेमघाव दुख जान न कोई । जेहि लागै जान तै सोई ॥ कठिन मरन ते प्रेम बेवस्था। ना जिउ जिय, न दसर्व अवस्था । जायसी ग्रन्थावली, प्रेमखण्ड, पहली चौपाई, पृ०४६ । ३. कबीर ग्रन्थावली, चतुर्थ संस्करण, विरह को अंग,१६वी साखी, पृ०६। ४. आनन्दधनपदसंग्रह, श्वॉ पद, प्रथम दो पंक्तियाँ। ५. सेन्तसुधासार, कबीरदास, 'सबद' ३८वाँ पद, पृ० ७६ । ६. बनारसीविलास, अध्यात्मगीत, तीसरा पद्य, पृ० १५६ ।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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