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________________ ४७८ हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि कवियोंके ब्रह्मके आराधकोंने 'प्रेमके 'अमली' उसीको माना है, जिसने ब्रह्म भी ऐसा ही है । जायसी और जैन प्याले' खूब पिये है | कवि भूधरदासने सच्चा प्रेमका प्याला पिया है, " "गांजारु मांग अफीम है, दारू शराबा पोशना । प्याला न पीया प्रेम का, अमली हुआ तो क्या हुआ ॥ महात्मा आनन्दघनने लिखा है कि प्रेमके प्यालेको पीकर मतवाला हुआ चेतन हो परमात्माकी सुगन्धि ले पाता है, और फिर ऐसा खेल खेलना है कि सारा संसार तमाशा देखता है । यह प्याला ब्रह्मरूपी अग्निपर तैयार किया जाता है, जो तनकी भट्टीमें प्रज्वलित हुई है, और जिसमे से अनुभवकी लालिमा सदैव फूटती रहती है, २,, "मनसा प्याला प्रेम मसाला, ब्रह्म अग्नि पर जाली । तन भाटी श्रवटाई पिये कस, आगे अनुभव लाली ॥ श्रगम प्याला पीयो मतवाला, चिन्ही अध्यातम वासा । आनन्दघन चेतन है खेले, देखे लोक तमासा ॥ जायसीके प्याले मे बेहोशी अधिक है । एक प्याला पीकर ही इतना नशा आता है कि होश नही रहता । जैनके प्यालेमे मस्ती अधिक है, बेहोशी कम, इसी कारण वे सामने खड़े प्रेमास्पदको देख सकने मे भी समर्थ हो पाते है । रत्नसैन तो प्रेमकी बेहोशी मे पद्मावतीको पहचानना तो दूर रहा, देख भी न सका, किन्तु उसने शून्य दृष्टिके मार्ग से ही प्राणोको समर्पित कर दिया । "जोगी दृष्टि दृष्टि सों लीना, नैन रोपि नैनहिं जिउ दीन्हा । जाहि मद चढ़ा परातेहि पाले, सुधि न रही ओहि एक प्याले ॥ कि वह जिसके लगा 3,, । 'प्रेमका तीर' तो ऐसा पैना है अन्य सन्त, जहाँका तहाँ रह गया और कूं, कहा समझाऊँ भोर । कबीरने भी लिखा है, "सारा बहुत पुकारिया, - चाहे वह जैन हो या महात्मा आनन्दघनकी दृष्टिमें, "कहा दिखावू तीर अचूक है प्रेम का लागे सो रहे ठौ ।” पीड़ पुकारें और । लागी चोट १. भूधरदास, भूधरविलास, कलकत्ता, ५०वी राजल, पृ० २८ । २. श्रानन्दघनपदसंग्रह, अध्यात्मज्ञान प्रसारक मण्डल, बम्बई, २८वाँ पद । ३. जायसी ग्रन्थावली, पं० रामचन्द्र शुक्ल सम्पादित, नागरी प्रचारिणी सभा, काशी, तृतीय संस्करण, वि० सं० २००३, वसन्त खण्ड, १२वी चौपाई, पृ० ८४ ४. आनन्दघनपदसंग्रह, ४था पद, पृ० ७ ।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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