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हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि कवियोंके ब्रह्मके आराधकोंने 'प्रेमके 'अमली' उसीको माना है, जिसने
ब्रह्म भी ऐसा ही है । जायसी और जैन प्याले' खूब पिये है | कवि भूधरदासने सच्चा प्रेमका प्याला पिया है,
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"गांजारु मांग अफीम है, दारू शराबा पोशना । प्याला न पीया प्रेम का, अमली हुआ तो क्या हुआ ॥ महात्मा आनन्दघनने लिखा है कि प्रेमके प्यालेको पीकर मतवाला हुआ चेतन हो परमात्माकी सुगन्धि ले पाता है, और फिर ऐसा खेल खेलना है कि सारा संसार तमाशा देखता है । यह प्याला ब्रह्मरूपी अग्निपर तैयार किया जाता है, जो तनकी भट्टीमें प्रज्वलित हुई है, और जिसमे से अनुभवकी लालिमा सदैव फूटती रहती है,
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"मनसा प्याला प्रेम मसाला, ब्रह्म अग्नि पर जाली । तन भाटी श्रवटाई पिये कस, आगे अनुभव लाली ॥ श्रगम प्याला पीयो मतवाला, चिन्ही अध्यातम वासा । आनन्दघन चेतन है खेले, देखे लोक तमासा ॥ जायसीके प्याले मे बेहोशी अधिक है । एक प्याला पीकर ही इतना नशा आता है कि होश नही रहता । जैनके प्यालेमे मस्ती अधिक है, बेहोशी कम, इसी कारण वे सामने खड़े प्रेमास्पदको देख सकने मे भी समर्थ हो पाते है । रत्नसैन तो प्रेमकी बेहोशी मे पद्मावतीको पहचानना तो दूर रहा, देख भी न सका, किन्तु उसने शून्य दृष्टिके मार्ग से ही प्राणोको समर्पित कर दिया ।
"जोगी दृष्टि दृष्टि सों लीना, नैन रोपि नैनहिं जिउ दीन्हा । जाहि मद चढ़ा परातेहि पाले, सुधि न रही ओहि एक प्याले ॥ कि वह जिसके लगा
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'प्रेमका तीर' तो ऐसा पैना है अन्य सन्त, जहाँका तहाँ रह गया और कूं, कहा समझाऊँ भोर । कबीरने भी लिखा है, "सारा बहुत पुकारिया,
- चाहे वह जैन हो या महात्मा आनन्दघनकी दृष्टिमें, "कहा दिखावू तीर अचूक है प्रेम का लागे सो रहे ठौ ।” पीड़ पुकारें और । लागी चोट
१. भूधरदास, भूधरविलास, कलकत्ता, ५०वी राजल, पृ० २८ ।
२. श्रानन्दघनपदसंग्रह, अध्यात्मज्ञान प्रसारक मण्डल, बम्बई, २८वाँ पद ।
३. जायसी ग्रन्थावली, पं० रामचन्द्र शुक्ल सम्पादित, नागरी प्रचारिणी सभा, काशी, तृतीय संस्करण, वि० सं० २००३, वसन्त खण्ड, १२वी चौपाई, पृ० ८४
४. आनन्दघनपदसंग्रह, ४था पद, पृ० ७ ।