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तुलनात्मक विवेचन
तुम ब्राह्मण कैसे हो गये और हम शूद्र कैसे बन गये। हम कैसे खून रह गये और तुम कैसे दूध हो गये।' सुन्दरदासने ब्राह्मण और शूद्रके अन्तरको गाल मारना लिखा है।
जैनोंके महात्मा आनन्दघनके अनुसार राम, रहीम, महादेव, पार्श्वनाथ और ब्रह्ममे कोई भेद नहीं है, वे सब एक अखण्ड आत्माको खण्ड कल्पनाएं हैं। जैसे एक ही मृत्तिका भाजन-भेदसे नानारूप धारण करती है, वैसे ही एक आत्मामें अनेक कल्पनाओंका आरोपण किया जाता है। यह जीव जब निज पदमें रमे तब राम, दूसरोंपर रहम करे तब रहीम, करमोंको करशे तब कृष्ण और जब निर्वाण प्राप्त करे तब महादेवको संज्ञासे अभिहित होता है। अपने शुद्ध आत्मरूपको स्पर्श करनेसे पारस और ब्रह्माण्डकी रचना करनेसे इसको ब्रह्म कहते है। इस भांति यह आत्मा स्वयं चेतनमय और निष्कर्म है।
कबीरदासने भी एक ही मनको गोरख, गोविन्द और औघड़ आदि नामोंसे अभिहित किया है। सन्त सुन्दरदासका कथन तो महात्मा आनन्दघनसे बिलकुल मिलता जुलता है। उनके अनुसार एक ही अखण्ड ब्रह्मकी भेदबुद्धिसे नाना
१. तुम कत बाह्मन हम कत सूद ।
हम कत लोहू तुम कत दूध ॥ २. काहू सौं बांभन कहै, काहू सों चंडाल।
सुन्दर ऐसौ भ्रम भयो, यों ही मारे गाल ॥
सन्त सुन्दरदास. स्वरूपविस्मरण कौ अंग, सन्तसुधासार, ५वाँ दोहा, पृ० ६५०। ३. राम कहो रहेमान कहो कोऊ, कान कहो महादेव री।
पारसनाथ कहो कोउ ब्रह्मा, सकल ब्रह्म स्वयमेव रो॥राम॥१॥ भाजन भेद कहावत नाना, एक मृत्तिका रूप री । तैसें खंड कल्पना रोपित, आप अखंड स्वरूप री॥राम०॥२॥ निज पद रमे राम सो कहिए, रहिम करे रहेमान री। करशे कर्म कान सो कहिए, महादेव निर्वाण रो॥राम०॥३॥ परसे रूप पारस सो कहिए, ब्रह्म चिन्हे सो ब्रह्म री। इस विध साधो आप आनन्दघन, चेतनमय निःकर्म री॥राम०॥४॥ महात्मा मानन्दधन, आनन्दधन पद संग्रह, अध्यात्मशानप्रसारक मण्डल, बम्बई, पद ६७वाँ। ४. कबीर ग्रन्थावली, डॉ. श्यामसुन्दरदास सम्पादित, नागरी प्रचारिणी सभा.
काशी, मन को अंग, १०वी साखी, पृ० २६ ।