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हिन्दी जैन भक्ति-काव्य और कवि
दिया है।' दादूके 'मस्तक पर तो ज्यों ही गुरुदेवने प्रसादका हाथ रखा कि 'आगम अगाध' के दर्शन हो गये। जैन कवि ब्रह्मजिनदासने अपने आदिपुराणमे 'मुगतिरमणी' को प्रकट करनेवाले भगवान् ऋषभदेवको सद्गुरुकी कृपासे ही जाननेको बात स्वीकार की है। भट्टारक शुभचन्द्रने तो यहांतक कहा है कि सतगुरुको मनमें धारण किये बिना शुद्ध चिद्रूपका ध्यान करनेसे भी कुछ न होगा। श्री कुशललाभने 'स्थूलभद्रछत्तीसी' में गुरु स्थूलभद्र के प्रसादसे 'परमसुख'का प्राप्त होना लिखा है। उन्होंने ही 'श्रीपूज्यबाहणगीतम्' मे भी लिखा है कि शुद्ध मनपूर्वक गुरुकी सेवा करनेसे शिवसुख उपलब्ध होता है।
पाण्डे रूपचन्दजीने अपने 'खटोलना गीत के द्वारा सिद्ध किया है कि सतगुरुकी कृपासे ही भ्रान्तिरूपी अलंकार नष्ट हो सकता है, अन्यथा नही। इस भांति जीव अविचल ज्ञानको प्राप्त करता है । कबीरदास भी गुरुके इस ज्ञानप्रदाता स्वभावसे १. परमातम सों आतमा जुदे रहे बहुकाल ।
सुन्दर मेला करि दिया सद्गुरु मिले दयाल ॥
डॉ. दीक्षित, सुन्दरदर्शन, इलाहाबाद, पृ० १७७ । २. दादू गैब माहिं गुरुदेव मिल्या, पाया हम परसाद ।
मस्तक मेरे कर घरया देख्या अगम अगाध ।।
दादू, गुरुदेव को अंग, सन्त सुधासार, पहली साखी, पृ० ४४६ । ३. तेह गुण में जांणी या ए, सदगुरु तणो पसावतो।
भवि भवि स्वामी सेवसुं, ए लागु सहगुरु पाय तो॥
ब्रह्मजिनदास, आदिपुराण, प्रशस्तिसंग्रह, जयपुर, पृ० २०४ । ४. भट्टारक शुभचन्द्र, तत्त्वसारदूहा, मन्दिर ठोलियान, जयपुरकी प्रति । ५. कुशललाभ, स्थूलभद्र छत्तीसी, पहला पद्य, राजस्थानमें हिन्दीके हस्तलिखित ग्रन्थों
की खोज, अगरचन्द नाहटा सम्पादित, साहित्य संस्थान, उदयपुर, १६५४ ई०,
पृ० १०५। ६. दिन दिन महोत्सव अतिघणा, श्री संघ भगति सुहाय ।
मन शुद्धि श्री गुरु सेवी यह, जिणि सेव्यइ शिव सुख पाई ॥ कुशललाभ, श्री पूज्यबाहरणगीतम् , जैन ऐतिहासिक काव्य संग्रह, अगरचन्द नाहटा
सम्पादित, कलकत्ता, वि० सं० १९६४।७. सोते सोते जागिया, ते नर चतुर सुजानि ।
गुरु चरणायुध बोलियो, समकित भयउ विहान ॥ कालरयन तब बीतई, ऊगो ज्ञान सुभानु । भ्रान्ति तिमिर जब नाशियो, प्रगटत अविचल थान ॥ पाण्डे रूपचन्द, खटोलना गीत, अनेकान्त वर्ष १०, किरण २, पृ० ७६ ।