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________________ हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि मुनि जयलाल 'विमलनाथ स्तवन' मे भी उदाहरणालंकारका प्रयोग हुआ है। एक स्थानपर उन्होंने लिखा है कि भगवान् के दर्शनसे मन ऐसा प्रसन्न हुआ, जैसे कि चन्द्रके देखने से चकोर हर्षित होता है, "तुम दरसन मन हरषा, चंदा जेम चकोरा जी । राजरिधि मांग नहीं, भवि भवि दरसन तोरा जी ॥ "," ४५० द्यानतरायने अनेक उदाहरणोंके द्वारा वर्ण्य विषयको सुन्दर बनाया है । एक स्थानपर उन्होंने लिखा है कि सम्यक्त्वके बिना इस जीवनको धिक्कार है । सम्यक्त्वके बिना जीवन कैसा है, यह बतानेके लिए, उन्होंने अनेक उदाहरण दिये हैं, "ज्यों बिनु कंत कामिनी शोभा, अंबुज बिनु सरवर ज्यों सूना । जैसे बिना एकड़े बिन्दी, त्यों समकित बिन सरव गुना ॥ जैसे भूप बिना सब सेना नींव बिना मंदिर चुनना । जैसे चन्द बिहूनी रजनी, इन्हें आदि जानो निपुना ॥ " पाण्डे रूपचन्दकी रचनाओं में भी उपमेयको उदाहरणोंके द्वारा पुष्ट बनाया गया है । उनमें सौन्दर्य है । एक स्थानपर उन्होंने लिखा है कि विषयोंके सेवनसे तृष्णा बुझती नहीं, जैसे खारी जलसे प्यास उपशम नहीं होती, "विषयन सेवते मये, तृष्णा तें न बुझाय । ज्यों जल खारा पीवते, बाढ़े तृषाधिकाय ॥ " विनोक्ति अलंकारमे एकके बिना दूसरेके शोभित अथवा अशोभित होनेका वर्णन किया जाता है । कवि भूधरदासने रागके बिना संसारके भोगोंकी सारहीनताका वर्णन किया है, "राग उदै मोग भाव लागत सुहावने से, बिना राग ऐसे लागे जैसे नाग कारे हैं । ' राग हीन सों पाग रहे तन में सदीव जीव, राग गये भावत गिलानि होत न्यारे हैं ॥ १. इसी ग्रन्थका दूसरा अध्याय । २. द्यानतराय, धानतविलास, कलकत्ता, ३५वा पद, पृ० १५ । ३. इसी ग्रन्थका दूसरा अध्याय ।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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