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हिन्दी जैन मक्ति-काव्य और कवि "चितवत बदन अमल चन्द्रोपम, तजि चिंता चित होय अकामी । त्रिभुवनचंद पापतपचंदन, समतचरण चन्द्रादिक नामी ॥ तिहुं जग छई चन्द्रिका कीरति, चिहन चन्द्र चिंतत शिवगामी । बन्दो चतुर चकोर चन्द्रमा, चन्द्रवरण चन्द्रप्रम स्वामी ॥''
कवि बनारसीदासने 'नाटक समयमार'मे २४५ सवैया-इकतीसा और ३७ तेईसासवैयोका निर्माण किया है। उनमे से एक सवैया-तेईसा इस प्रकार है,
"या घट में भ्रमरूा अनादि, विलास महा अविवेक अखारो। तामँहि और सरूप न दीसत, पुद्गल नृत्य करै अतिभारो॥ फेरत भेष दिखावत कौतुक, सो जलिये वरनादि पसारो। मोहसुं भिन्न जुदो जड़ सों, चिनमूरति नाटक देखन हारो॥""
भैया भगवतीदास भी सवैयोके निर्माणमे अधिक कुशल है । उनके द्वारा रचा हुआ एक 'समान सवैया' निम्न प्रकारसे है, "काल अनादित फिरत फिरत जिय, अब यह नरमव उत्तम पायो । समुझि समुझि पंडित नर प्रानी, तेरे कर चिंतामणि आयो । घट की आँखें खोलि जोहरी, रतन जीव जिनदेव बतायो । तिल में तेल वास फूलनि में, यो घट मे घटनायक गायो॥"
छप्पय
चन्दबरदाईके 'पृथ्वीराज रासो' और उसके पूर्व अपभ्रंशमे छप्पयका प्रयोग प्रायः वीर-रसमें ही हुआ है । जैन हिन्दीके कवियोंने उसको अध्यात्म और भक्तिके क्षेत्रमें भी प्रयुक्त किया। कवि बनारसीदासने 'नाटक समयसार में २० छप्पयोंका निर्माण किया है। भूधरदासके 'जनशतक मे मत्तगयन्द और मनहर सवैयों तथा दोहोके साथ-साथ छप्पयोंका भी प्रयोग हुआ है। भगवान् पार्श्वनाथको भक्तिमे एक छप्पयकी प्रथम दो पंक्तियाँ इस प्रकार हैं, .
"जनम-जलधि-जलजान जान जनहंस-मान सर ।
सरव इन्द्र मिलि आन, आन जिस धरहिं शीस पर । १. वही, ५वा सवैया पृ० । २. बनारसीदास, नाटक समयसार, जैन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय, बम्बई, प्रथम संस्करण, . वि० स० १९२६, पृ०८१।। ३. मैया भगवतीदास, शत अष्टोत्तरी, ८५वाँ सेवैया, ब्रह्मविलास, ६२६ ई०, बम्बई,
५०.२७॥ ४. भूधरदास, जैनशतक, कलकत्ता, यहाँ छप्पय, पृ०.३ ।