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हिन्दी जैन भक्ति-काव्य और कवि
पिय बारह बार बरै दियरा, जियरा तुमरा तरसावैंगी ॥"
भूधरदासका प्रत्येक पद प्रसादगुणका साक्षात् प्रतीक है । 'पार्श्वपुराण', 'जैन शतक', और 'भूधर विलास' के अतिरिक्त, उनके अनेक स्तुति स्तोत्रों में भी उपर्युक्त गुण ही सार्थकताको प्राप्त हुआ है ।
इस युगके जैन हिन्दी कवियोंने खडी बोलीका प्रयोग किया है । उसपर फ़ारसीका स्पष्ट प्रभाव है । अर्थात् उनकी कविताओमे फ़ारसीके शब्दों का प्रयोग हुआ है । किन्तु ये शब्द अपनी बोलीमे ढालकर अपनाये गये है, उनका तत्सम रूप कहीं-कहीं ही देखनेको मिलता है । बनारसीदासके 'अर्धकथानक' में हुकुम, मुसकिल, सौदा, मुलक, खबरि, तहकीक, हुसियार, खुसहाल, नफर, नजरि स्याबास, उमराउ, साहिजादे, सुखुन, पैजार, और खोसरा जैसे अनेक उर्दूफ़ारसीके शब्द है । डॉ० हीरालाल जैनका कथन है कि इन शब्दोका प्रयोग वहाँपर ही हुआ है, जहाँ मुग़ल राज-काजसे सम्बन्धित प्रसंग आया है । किन्तु 'नाटक समयसार' में ऐसे शब्द आध्यात्मिक प्रसंगमे भी आये है । वहीं खलक, दुफारा, वदफैल, खेद, गहल, खबरदार, निसानी, रुख, गुमानी और मसूरति जैसे शब्द सर्वत्र बिखरे हुए है । 'ज्ञानबावनी' मे ही करामात, जोर, जहर, कहर, ख्याल, तलक, खलक, दरम्यान, कुमक, खजाना, खारी, सरहद, जहान-जैसे अनेक शब्द मौजूद हैं ।
भैया भगवतीदास फ़ारसीके अच्छे जानकार थे, किन्तु उन्होने भी फ़ारसीके शब्दोंको तद्भव बनाकर ही अपनाया है। उनकी रचनाओंमे ख्याल, अमल, मुकाम, सहल, फोजदार, परवाह, नजदीक, गनीम, खिलाफ, दोजक, फिरस्ता और उमर आदि शब्द देखे जाते है । उनके किसी-किसी कवित्तमे तो फ़ारसीके शब्दोंकी बहुलता है, अतः उसका 'टोन' फ़ारसीमय हो गया है । एक कवित्त देखिए,
" मान यार मेरा कहा दिल की चशम खोल, साहिब नजदीक है तिसको पहचानिये | नाहक फिरहु नाहिं गाफिल जहान बीच शुकन गोश जिनका भली भांति जानिये ॥ पावक ज्यों बसता है अरनी पखान माहिं, तीस रोस चिदानंद इस ही में मानिये ।
१. बारहमासा नेमिराजुलका, १०वाँ पद्य, बारहमासा संग्रह, कलकत्ता ।