________________
१६
हिन्दी जैन भक्ति-काव्य और कवि "गूढ़ स्वभाव जिनिंद सदा तू सब पती, महिमा तेरी गूढ़ लहै नहिं गणपती । तू गूढातमदेव निरन्तर सब मही, मैं मतिहीन अयान भेद पायो नहीं ॥"
स्मरण
सभी भक्त अपने-अपने आराध्यका स्मरण करते है । स्मरण ही वियोगीका एकमात्र सहारा है । उसीके बलपर भक्त जीवित रहता है। भक्त तबतक स्मरण करता है, जबतक आराध्यमय नहीं हो जाता। राधा जब स्मरण करते-करते कृष्णमय हो गयो, तभी उसे चैन पड़ा। जैन आचार्योने स्मरण और ध्यानको पर्यायवाची कहा है । स्मरण पहले तो रुक-रुककर चलता है, फिर शनैः-शनैः उसमे एकतानता आती जाती है, और वह ध्यानका रूप धारण कर लेता है। स्मरणमे जितनी अधिक तल्लीनता बढ़ती जायेगी, वह उतना ही तद्रूप होता जायेगा । 'एकीभाव स्तोत्र मे लिखा है कि भगवान्के ध्यानसे मुझमे 'त्वय्येवाई की मति उत्पन्न हो जाती है। 'कल्याणमन्दिर स्तोत्र'मे कहा गया है कि जिनेन्द्रके ध्यानसे क्षणमात्रमें यह जीव परमात्म दशाको प्राप्त हो जाता है।'
हिन्दीके जैन कवियोंने सतत स्मरणके बलपर भगवान्के तादात्म्यकी बात अनेक स्थानोंपर कही है। कवि बनारसीदासने 'अध्यात्मगीत'में लिखा है, "भागइ भरम करत पिय ध्यान । फाटर तिमिर ज्यों ऊगत मान ।" कवि
१. प्रादुर्भूतस्थिरपदसुख त्वामनुध्यायतो मे,
त्वय्येवाहं स इति मतिरुत्पद्यते निर्विकल्पा । मिथ्यैवेयं तदपि तनुते तृप्तिमभ्रेषरूपां, दोषात्मानोऽप्यभिमतफलास्त्वत्प्रसादाद्भवन्ति ॥
-एकोभावस्तोत्र, १७वा पद्य । २. ध्यानाजिनेश भवतो भविनः क्षणेन,
देहं विहाय परमात्मदशां व्रजन्ति । तीवानलादुपलभावमपास्य लोके, चामीकरत्वमचिरादिव धातुभेदाः ॥
-कल्याणमन्दिरस्तोत्र, १५वा श्लोक । ३. बनारसीविलास, जयपुर, अध्यात्मगीत, १५वॉ पद्य, पृ० १६१ ।