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हिन्दी जैन भक्ति-काव्य और कवि
शत्रु नष्ट हो जाते है, और 'सिद्ध'के भजनसे सब काम सिद्ध हो जाते है। आचार्यकी भवितसे सद्गुणोका समावेश होता है । उपाध्यायके ध्यानसे 'उपाध्याय'जैसे बन जाते है, और साधुओके स्मरणसे सब मनोकामनाएं पूरी हो जाती है। इस भाँति पंचपरमेष्ठीके नाममन्त्रका जाप इस जीवको निजधाम अर्थात् मोक्ष प्राप्त करा देता है।" श्री यशोविजयजीने 'आनन्दधन अष्टपदी'के एक पद्यमै लिखा है, "अरे ओ चेतन ! तू इस संसारके भ्रममे क्यों फंसा हुआ है। भगवान् जिनेन्द्रके नामका भजन कर । सद्गुरुने भी भगवान्के नाम जपनेका ही उपदेश दिया है।"
द्यानतरायने अपने मनको समझाते हुए लिखा है, "हे मन ! तू दीनदयालु भगवान् जिनेन्द्रको भज, जिसका नाम लेनेसे क्षणमात्रमे करोडो पापोके जाल कट जाते है। जिसके नामको इन्द्र, फणीन्द्र और चक्रधर भी गाते है, तथा जिसके नानरूपी ज्ञान के प्रकाशसे मिथ्या जाल स्वतः ही नष्ट हो जाता है । जिसके नामके समान ऊर्ध्व, मध्य और पाताल लोकमे भी कोई नहीं है, उसीके नामको नित्य प्रति जपो और विकराल विषयोंको छोड़ दो।"
रं मन ! मज मज दीनदयाल ॥ जाके नाम लेत इक छिन मैं, कटें कोट अघ जाल ॥रे मन० ॥ इन्द्र फनिन्द चक्रधर गावें, जाको नाम रसाल । जाको नाम ज्ञान परकास, नाशै मिथ्या जाल ॥ रे मन० ॥ जाके नाम समान नहीं कछु, ऊरध मध्य पताल । सोई नाम जपों नित धानत, छोड़ि विषय विकराल ॥ रे मन० ॥3
१. करमादिक अरिन को हरै अरहंत नाम,
सिद्ध करै काज सब सिद्ध को भजन है। उत्तम सुगुन गुन आचरत जाकी संग,
___ आचारज भगति वसत जाकै मन है। उपाध्याय ध्यान ते उपाधि सम होत,
साध परिपूरण को सुमरन है। पंच परमेष्ठी को नमस्कार मंत्रराज,
धावै मनराम जोई पावै निजधन है ।। मनराम, मनराम विलास, पद्य १, मन्दिर ठोलियान जयपुरकी हस्तलिखित प्रति । २. जिनवर नामसार भज आतम, कहा भरम संसारे ।
सुगुरु वचन प्रतीत भये तब, आनन्दघन उपगारे ।। काया० ।।
यशोविजय, आनन्दधन अष्टपदी, आनन्दधन बहत्तरी, रायचन्द्र ग्रन्थमाला, बम्बई । ३. यानत पदसंग्रह, कलकत्ता, ६६वाँ पद, पृ० २८ ।