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________________ हिन्दी जैन भक्ति-काव्य और कवि कुम्भस्थल-जैसे स्तनोको धारण करनेवाली भामिनियोको पियका संग भा रहा है। स्वाती नक्षत्रकी बूंदोंसे चातककी पीड़ा भी दूर हो गयी है। शुष्क पृथ्वीकी देह भी हरियालीको पाकर दिप उठी है। किन्तु राजुलका न तो पिय आया और न पतियां।" ठीक इसी भाँति एक बार जायसीकी नागमती भी विलाप करते हुए कह उठी थी, "चातकके मुखमे स्वाती नक्षत्रकी बूंदें पड़ गयी, और समुद्रकी सब सीपें भी मोतियोंसे भर गयी। हंस स्मरण कर-करके अपने तालाबोंपर आ गये, सारस बोलने लगे और खजन भी दिखाई पड़ने लगे। कासोके फूलनेसे वनमे प्रकाश हो गया, किन्तु हमारे फन्त न फिरे, कही विदेशमे ही भूल गये।" कवि भवानी दासने भी 'नेमिनाथबारहमासा' लिखा था, जिसमें कुल १२ पद्य है। श्री जिनहर्षका 'नेमिबारहमासा' भी एक प्रसिद्ध काव्य है। उसके १२ सवैयोंमें सौन्दर्य और आकर्षण व्याप्त है । श्रावण मासमे राजुलकी दशाको उपस्थित करते हुए कविने लिखा है, 'श्रावण मास है, घनको घनघोर घटाएं उनै आयी है। झलमलाती हुई बिजुरी चमक रही है, उसके मध्यसे वज्र-सी ध्वनि फूट रही है, जो राजुलको विषवेलिके समान लगती है। पपीहा ‘पिउ-पिउ' रट रहा है। दादुर और मोर बोल रहे है । ऐसे समयमे यदि नेमीश्वर मिल जायें तो राजुल अत्यधिक सुखो हो।" १. उमटी विकट घनघोर घटा चिहुँ ओरनि मोरनि सोर मचायो । चमकै दिवि दामिनि यामिनि कुंभय भामिनि कुं पिय को संग भायो । लिव चातक पीउ ही पीड़ लई, भई राजहरी भुंइ देह दिपायो । पतियां पै न पाई री प्रीतम को अली, श्रावण आयो पे नेम न आयो । कवि लक्ष्मीवल्लभ, नेमिराजुलबारहमासा, पहला पद्य, इसी ग्रन्थका दूसरा अध्याय। २. स्वाति बूंद चातक मुख परे । समुद सीप मोती सब भरे ॥ सरवर संवरि हंस चलि आये । सारस कुरलहिं खंजन देखाये ॥ भा परगास कांस बन फूले । कंत न फिरे विदेसहिं भूले ॥ जायसी, पद्मावत, पं० रामचन्द्र शुक्ल सम्पादित, काशी नागरी प्रचारिणी सभा, तृतीय संस्करण, वि० सं० २००३, ३०७, पृ०१५३ । ३. धन को धनघोर घटा उनहो, विजुरी चमकंति झलाहलि सी। विचि गाज अगाज अवाज करंत सु, लागत मो विष वेलि जिसी ॥ पपीया पिउ पिउ रटत रयण जु, दादुर मोर वदै ऊलि सी। ऐसे श्रावण मे यदु नेमि मिले, सुख होत कहै जसराज रिसी ॥ जिनहर्ष, नेमि बारहमासा, इसी ग्रन्थका दूसरा अध्याय।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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