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हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि
समय आचार्यका 'दीक्षा कुमारी' अथवा 'संयमश्री' के साथ विवाह सम्पन्न होता है और दूसरा वह जब आत्मारूपी नायकके साथ उसीके किसी गुणरूपी कुमारीकी गाँठें जुड़ती है । इनमे प्रथम प्रकारके विवाहोंका वर्णन करनेवाले कई रास 'ऐतिहासिक काव्यसंग्रह' में संकलित हैं । दूसरे प्रकार के विवाहोंमे सबसे प्राचीन जिनप्रभसूरिका 'अन्तरंग विवाह' प्रकाशित हो चुका है। उपर्युक्त सुमति और चेतन दूसरे प्रकारके पति-पत्नी है । इसीके अन्तर्गत वह दृश्य भी आता है । जब कि आत्मारूपी नायक 'शिवरमणी' के साथ विवाह करने जाता है । अजयराज पाटणीके 'शिवरमणी - विवाह' का उल्लेख हो चुका है। वह १७ पद्योंका एक सुन्दर रूपक-काव्य है । उन्होने 'जिनजीकी रसोई' में तो विवाहोपरान्त सुस्वादु भोजन और वन-विहारका भी उल्लेख किया है ।
बनारसीदासने तीर्थंकर शान्तिनाथका शिवरमणीसे विवाह दिखाया है । शान्तिनाथ विवाह मण्डपमे आनेवाले हैं । होनेवाली वधूकी उत्सुकता दबाये नहीं दबती । वह अभीसे उनको अपना पति मान उठी है । वह अपनी सखीसे कहती है, "हे सखी ! आजका दिन अत्यधिक मनोहर है । किन्तु मेरा मनभाया अभीतक नहीं आया । वह मेरा पति सुख-कन्द है, और चन्द्रके समान देहको धारण करनेवाला है, तभी तो मेरा मन उदधि आनन्दसे आन्दोलित हो उठा है । और इसी कारण मेरे नेत्र-चकोर सुखका अनुभव कर रहे है। उसकी सुहावनी ज्योतिकी कीत्ति संसार में फैली हुई है । वह दुःखरूपी अन्धकारके समूहको नष्ट करनेवाली है । उनकी वाणीसे अमृत झरता है । मेरा सौभाग्य है, जो मुझे ऐसे पति प्राप्त हुए है।""
तीर्थंकर अथवा आचार्योंके 'संयमश्री' के साथ विवाह होनेके वर्णन तो बहुत अधिक है । उनमें से 'जिनेश्वरसूरि' और 'जिनोदयसूरि विवाहला' एक सुन्दर काव्य है | इसमे इन सूरियों का संयमश्री के साथ विवाह होनेका वर्णन है । इसकी
१. देखिए इसी ग्रन्थका दूसरा अध्याय, अजयराज पाटणी । २. सहि एरी ! दिन आज सुहाया मुझ भाया आया नहीं घरे । सहि एरी ! मन उदधि अनन्दा सुख, कन्दा चन्दा देह घरे ॥ चन्द जिवां मेरा वल्लभ सोहै, नैनचकोरहि सुक्ख करें । जगज्योति सुहाई कीरति छाई, बहु दुख तिमर वितान हरे । सहु काल विनानी अमृतवानी, अरु मृग का लांछन कहिए । श्री शान्ति जिनेशनरोत्तम को प्रभु, आज मिला मेरी सहिए ॥१॥ बनारसीविलास, जयपुर, श्री शान्तिजिनस्तुति, प्रथम पद्य, पृ० १८६ |