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जैन भक्ति-काव्यका भाव-पक्ष
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उपस्थित किया है । सुमति चेतनसे कहती है "हे प्यारे चेतन ! तेरी ओर देखते ही परायेपनको गगरी फूट गयी, दुविधाका अंचल हट गया और समूची लज्जा पलायन कर गयी। कुछ समय पूर्व तुम्हारी याद आते ही मै तुम्हे खोजनेके लिए अकेली ही राजपथको छोड़कर भयावह कान्तारमें घुस पडी थी। वहां कायानगरीके भीतर तुम अनन्त बल और ज्योतिबाले होते हुए भी कोक आवरणमे लिपटे पड़े थे। अब तो तुम्हे मोहकी नींद छोड़कर सावधान हो जाना चाहिए।"
"बालभ तुहु तन चितवन गागरि फूटि अंचरा गौ फहराय सरम गै छुटि, बालम० ॥१॥ पिंउ सुधि पावत वन में पैसिउ पेलि छाडत राज डगरिया भयउ अकेलि, बालम० ॥३॥ काय नगरिया भीतर चेतन भूप करम लेप लिपटा बल ज्योति स्वरूप, बालम० ॥५॥ चेतन बूझि विचार धरहु सन्तोष
राम दोष दुइ बंधन छूटत मोष, बालम० ॥१३॥'' एक सखी सुमतिको लेकर नायक चेतनके पास मिलाने के लिए गयी। पहले दूतियां ऐसा किया करती थी। वहां वह सखो अपनी बाला सुमतिको प्रशंसा करते हुए चेतनसे कहती है, "हे लालन ! मैं अमोलक बाला लायी हूँ। तुम देखो तो वह कैसी अनुपम सुन्दरी है । ऐसी नारी तीनों संसारमें दूसरी नही है । और हे चेतन ! इसकी प्रीति भी तुझसे ही सनी हुई है। तुम्हारी और इस राधेकी एक-दूसरेपर अनन्त रीझि है । उसका वर्णन करने में मैं पूर्णरीत्या असमर्थ हूँ।"२
आध्यात्मिक विवाह
इसी प्रेमके प्रसंगमें आध्यात्मिक विवाहोंको लिया जा सकता है। ये 'विवाहला' 'विवाह', 'विवाहल', और 'विवाहलौ' आदि नामोंसे अभिहित हुए है । इनको दो भागोंमें विभक्त किया जा सकता है-एक तो वह जब दीक्षा-ग्रहणके
१. बनारसीबिलास, जयपुर, अध्यात्मपदपंक्ति , पृ० २२८-२२६ । २. लाई हो लालन बाल अमोलक, देखहु तो तुम कैसी बनी है।
ऐसी कहुँ तिहुँ लोक मे सुंदर, और न नारि अनेक धनी है । याहि ते तोहि कहूँ नित चेतन, याहू की प्रीति जु तो सों सनी है। तेरी औ राधे को रीझि अनंत सुमो पै कहूँ यह जात गनी है ।। ब्रह्मविलास, शत अष्टोत्तरी, पद्य २८, पृ० १४ ।
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