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जैन भक्ति-काव्यका भाव-पक्ष
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उससे मिलकर इस प्रकार एकमेक हो गयी कि द्विविधा तो रही ही नहीं। उसके एकत्वको कविने अनेक सुन्दर दृष्टान्तोसे पुष्ट किया है। वह करतूति है और पिय कर्ता, वह सुख-सीव है और पिय सुख सागर, वह शिव-नीव है और पिय शिव-मन्दिर, वह सरस्वती है और पिय ब्रह्मा, वह कमला है और पिय माधव, वह भवानी है और पति शंकर, वह जिनवाणी है और पति जिनेन्द्र ।
"पिय मोरे घट मैं पिय माहिं । जल तरंग ज्यों दुविधा नाहिं ॥ पिय मो करता मैं करतूति । पिय ज्ञानी मैं ज्ञान विभूति । पिय सुख सागर मैं सुख सीव । पिय शिव मंदिर मैं शिवनीय ॥ पिय ब्रह्मा मैं सरस्वति नाम । पिय माधव मो कमला नाम ।
पिय शंकर मैं देवि भवानि । पिय जिनवर मैं केवल बानि ॥"" कविने सुमति रानीको 'राधिका' माना है। उसका सौन्दर्य और चातुर्य सब कुछ राधाके ही समान है। वह रूपसी रसीली है और भ्रमरूपी तालेको खोलनेके लिए कोलीके समान है। ज्ञान-भानुको जन्म देनेके लिए प्राची है और आत्म-स्थलमे रमनेवाली सच्ची विभूति है। अपने धामकी खबरदार और रामकी रमनहार है । ऐसी सन्तोंकी मान्य, रसके पन्थ और ग्रन्थोमै प्रतिष्ठित और शोभाको प्रतीक राधिका सुमति रानी है। ___ सुमति अपने पति 'चेतन' से प्रेम करती है। उसे अपने पतिके अनन्त ज्ञान, बल और वीर्यवाले पहल पर एकनिष्ठा है। किन्तु वह कर्मों की कुसंगतिमे पड़कर भटक गया है । अतः बड़े ही मिठास-भरे प्रेमसे दुलराते हुए सुमति कहती है, "हे लाल ! तुम किसके साथ कहां लगे फिरते हो, आज तुम ज्ञानके महलमे क्यों नही आते । तुम अपने हृदय-तलमे ज्ञानदृष्टि खोलकर देखो, दया, क्षमा,
१. बनारसीविलास, जयपुर, अध्यात्मगीत, पृष्ठ १६१॥ २. रूप की रसीली भ्रम कुलप की कीली,
शील सुधा के समुद्र झीलि सीलि सुखदाई है। प्राची ज्ञान भान की अजाची है निदान की, सुराची निरवाची ठौर सांची ठकुराई है। धाम की खबरदार राम की रमनहार, राधा रस पंथनि में ग्रन्थनि मे गाई है। सन्तन की मानी निरवानी रूप की निसानी, यातें सुबुद्धि रानी राधिका कहाई है। बनारसीदास, नाटकसमयसार, सर्वविशुद्धिद्वार पद्य ७४ ।