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जैन भक्ति-काव्यका भाव-पक्ष
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गजगामिनी और शशिवदनी तरुणियाँ है. वे सब मंगल-गीत गा रही हैं। राजा नाभिरायके घर पुत्र-जन्म हुआ है, और इस अवसरपर उनके यहाँ जो कोई जो कुछ मांगने आया, उससे कहीं अधिक दिया गया, जिससे उसे फिर मांगनेकी आवश्यकता ही नहीं रह गयी । मरु देवीकी कुंख धन्य है, जिससे ऐसा प्रतापशाली पुत्र हुआ कि देवता भी मौके चरणोंकी वन्दना करनेमें अपना अहोभाग्य मानने है।" कवि बनारसीदासने दूसरे तीर्थकर अजितनाथके जन्मोत्सवका वर्णन क्यिा है। उस अवसरपर भी देवांगनाओंने मधुर ध्वनिमे मंगलाचारके गीत गाये थे। अजितनाथ निर्मल चन्द्र की भांति सुन्दर थे। उनके जन्मसे पृथ्वी शोभा-सम्पन्न हो गयी और तीनो लोकोंमे आनन्द छा गया। इक्ष्वाकु वंगमे उनके उत्पन्न होनेसे कुमतिरूपी अन्धकार तो जड़मूलसे विनष्ट हो गया था।
कवि बनारसीदासने एक आध्यात्मिक बेटेके जन्मको दिखानेका प्रयास किया है। वह आध्यात्मिक बेटा 'शुद्धोपयोग' है। दोनोंमें बड़ी कुशलतासे 'सांगरूपक' रचा गया है। जिस प्रकार मूल नक्षत्रमें उत्पन्न होनेवाला पुत्र समूचे कुटुम्बको खा जाता है, ठीक वैसे ही शुद्धोपयोगके उत्पन्न होते ही परिवारसम्बन्धी माया-ममता बिलकूल समाप्त हो गयी। उसने जन्म लेते ही ममतारूपी माता, मोह-लोभरूपी दोनों भाई, काम-क्रोधरूपी दो काका और तृष्णा रूपी धायको खा लिया। पापरूपी पड़ोसी, अशुभ कर्मरूपी मामा और घमण्ड नगरके राजाको समाप्त ही कर दिया, तथा स्वयं समूचे गांवमे फैल गया। उसने दुर्मतिरूपी दादीको खा लिया और दादा तो उसका मुख देखते ही मर गया था। इस बालकके उत्पन्न होनेपर भी मंगलाचारके बधाये गाये गये थे। इस बालकका नाम भोंदू रखा गया, क्योंकि उसके कुछ भी रूप और वर्ण नही है। यह तो ऐसा बालक है, जिसने नाम रखनेवाले पाण्डेको भी खा लिया है।
१. गजगमनी शशि बदनी तरुनी, मंगल गावत हैं सिगरी ।
भाई आन आनन्द है या नगरी ॥ नाभिराय घर पुत्र भयो है, किये हैं अजाचक जाचकरी ।
भाई आज आनन्द है या नगरी ।। द्यानत धन्य कूख मरुदेवी, सुर सेवत जाके पद री।
भाई आज आनन्द है या नगरी ॥ द्यानतपदसंग्रह, कलकत्ता, पद २०, पृ०३।। २. बनारसीदास, बनारसी विलास, जयपुर १९५४, अजितनाथजीके छन्द, पृष्ठ १८८। ३. बनारसीदास, बनासी विलास, जयपुर, १९५४, परमार्थ हिंडोलना, पृष्ठ २३१ । ४८