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हिन्दी जैन भक्ति-काव्य और कवि हो । बधोचन्दजीके मन्दिरके गुटका नं० १५८ वेष्टन नं० १२७५ मे निबद्ध एक पदको पंक्तियां इस प्रकार है,
"तुम परमातम देषि जु पद अपनो लष्यो
आतम अनुभव अमृत रस अपुरब चष्यो । सेसै सब मिटि गयो महा आनन्द भयौ अचल अषंडित निज पद निज घट मैं लयौ ॥ ८ ॥ नमुं नमुं प्रभु हरष महा उर आणि के मगन भयो तुम देषि निजपद जानि के। इहै भगति नर नारी मन धरि गाइसी
अजैराज कहै सुण मुकति पद गाइसी ॥९॥" अजयराजका पूजा और जयमाला साहित्य
जयपुरके बधीचन्दजीके मन्दिर में विराजमान गुटका नं० ५० बहुत ही प्रसिद्ध है। इसमें २०२ पृष्ठ है । अजयराजकी अनेकानेक रचनाएं इसी गुटकेमे संकलित हैं। अधिकतर पूजाएँ है । 'आदिनाथपूजा', 'चतुर्विंशति तीर्थकरपूजा', 'नन्दीश्वर पूजा', 'पंचमेरु पूजा', 'बोस तीर्थंकरोको जयमाल', 'सिद्ध स्तुति', 'चौबीस तीर्थकर स्तुति' और 'श्री श्रेयांस सकल गुण धार' भी इसीमे अंकित है । इनके अतिरिक्त 'पार्श्वनाथ सालेहा' भी इसीमें लिखा हुआ है, जिसको रचना सं० १७९३ ज्येष्ठ सुदी १५ को हुई थी। 'आदिनाथ पूजा' पूर्ण है। 'नन्दीश्वर पूजा मे केवल ९ पद्य है। सबसे अधिक पद्य 'चौबीस तीर्थंकर स्तुति'मे है, अर्थात् २० पद्य है । भगवान् जिनेन्द्रकी भक्तिमे लिखे गये अन्य मुक्तक पद भी इसी गुटकेमें निबद्ध है। णमोकार सिद्धि __ यह भी उपर्युक्त मन्दिरके गुटका नं० ५१ और वेष्टन नं० १२१७मे अंकित है। यह गुटका सं० १८२३ कात्तिक बदी ७ को लिखा गया था। यह छोटा-सा काव्य ‘णमोकार मन्त्रकी महत्ता' से सम्बन्धित है। नेमिनाथ चरित
यह एक महत्त्वपूर्ण कृति है। इसकी रचना वि० सं० १७९३ आषाढ़ सुदी १३ को हुई थी। इसकी प्रतिलिपि सं० १७९८ चैत्र सुदी ८ को की गयी। १. संवत सतरासै त्रैणवै, मास असाढ़ पाई वर्णयो ।
तिथि तेरस अंधेरी पाख, शुक्रवार शुभ उतिम दाख । नेमिनाथ चरित्र, ठोलियोंके मन्दिर, जयपुरकी हस्तलिखित प्रति ।