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________________ जैन मक्त कवि : जीवन और साहित्य कि उनपर बनारसीकी 'अध्यात्म परम्परा' का भी प्रभाव था। आत्माको लेकर बारहमासोका वर्णन करना अदृष्टके प्रति अनुभूति-परक भावोंको प्रकट करना है। भवानीदासकी रचनाएँ इस प्रकार हैं : 'चोवीस जिनबोल' पद्य - सं० १७९७, 'अध्यात्म बारहमास' - १२ पछ - १७८१, 'ज्ञाननिर्णय बावनी' १२ पच - सं. १७९१, काकाबत्तीसी - ३४ पद्य - सं० १७९६, 'चौबोसीके कवित्त' - २६ पद्य, 'हितोपदेश बावनी' - ५२ दोहा - सं० १७९२, पन्नवणा अल्पाबहुत ९८ बोल भाषा, - ५२ पद्य - सं० १७९१, 'सुमति कुमति बारहमासा' - १२ पद्य, ज्ञानछन्द चालीसी - ४० पद्य - सं० १८१०, सरधा छत्तीसी - ३७ पद्य, 'नेमिनाथ बारहमासा' - १२ पद्य, 'चेतन हिण्डोलना गीत'-८ पद्य, 'नेमिहिण्डोलना'-८ पद्य, 'राजमति हिण्डोलना'-८ पद्य, 'नेमिनाथ राजीमती गोत'-८ पद्य, 'चेतन सुमति सज्झाय' - १२ पद्य, 'फुटकर शतक' - ९८ पद्य, 'जीवविचार भाषा' - १५१ पद्य । भवानीदासके कतिपय पद, अतिशय क्षेत्र महावीरजीके एक अधजले गुटकेमे निषद्ध हैं। नेमीश्वरकी भक्तिमें समर्पित एक पद देखिए, "स्य चढ़ जादुनंदन आवत हैं चलो सखी मिली देषन कू॥ मोर मुकुट केसरिया जामा कर में कंगण राजित हैं । तीन छत्र माथे पर सोहै चवसठ चमर ढुगवत हैं। इन्द्र चन्द्र थारी सेवा करत हैं नारद बीन बजावत हैं। दास मवानी दोउ कर जोड़े चरणों में सीस नवावत हैं।" ९०. अजयराज पाटणी (वि० सं० ५७९२-१७९४) अजयराज आमेरके रहनेवाले थे। इनकी जाति खण्डेलवाल और गोत्र पाटणी था। कतिपय रचनाओंसे स्पष्ट है कि वे अट्ठारहवीं शताब्दीके अन्तिम पादमे हुए थे। 'यशोधर चौपई'-सं० १७९२, पाश्वनाथ सालेहा' - सं० १७९३ और 'आदिपुराण' - सं० १७९७ मे रचे गये थे। इससे उनका रचना-संवत् स्पष्ट है।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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