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हिन्दी जैन भक्ति-काव्य और कवि ऐसो तो विनु को कहै को देवै निज ज्ञान कौं ।
सुनि जु वीनती तारि हरि मुंदि रहे मति कानकौं ॥" पं० दौलतराम छहढाला आदिके कर्ता पं. दौलतरामसे पृथक् थे।
८९. भवानीदास (वि० सं० १७९१ )
बनारसमे रामघाटपर एक जैन मन्दिर है, जिसके शास्त्र-भण्डारमे अनेको हस्तलिखित प्रतियोका संचय है। एक प्रतिमे भवानीदासको अठारह रचनाएं लिपिबद्ध हैं। सभी हिन्दीमे है । उनपर राजस्थानी अथवा गुजरातीको कोई छाप नहीं है। इनके आधारपर यह प्रमाणित है कि उनका जन्म हिन्दी भाषा-भाषियोके मध्य ही हुआ था । 'फुटकर शतक' के तीन पद्योमे आगरेके तीन श्वेताम्बर मन्दिरो और उनमे प्रतिष्ठित मुख्य मूर्तियोका समय आदि दिया है। पहले पद्यके अनुसार आगरेके चिन्तामणिजीके मन्दिरको स्थापना सं० १६४० माघ बदी ५ को हुई। दूसरे पद्य के अनुमार श्रीगणवर स्वामीके मन्दिरमे चन्द्राननजीकी प्रतिमा स०१६६८ को माघ बदी ७ को साह होरानन्दने बनवायी, जिनके घरपर सम्राट् जहाँगीर आया था। तीसरे पद्यके अनुसार भगवान् शोतलनाथकी प्रतिमा सं० १८१८ के माघ सुदी १४ को प्रतिष्ठित हुई। इस भाँति उन्होने आगरके शाह हीरानन्दका भी सम्मानपूर्वक उल्लेख किया है । यद्यपि उन्होंने दिल्लोके वासुपूज्यजीके मन्दिरकी स्थापनाकी भी बात कही है किन्तु मुख्यता आगरेके मन्दिरोंकी ही है। इन भाधारोसे यह अनुमान लगाना श्रासान है कि वे आगरेके रहनेवाले थे और उनका जन्म श्वेताम्बर जातिमें हुआ था। ऐसा प्रतीत होता है कि उनके गुरुका नाम 'गुरु मानाजी' था जो एक प्रतिष्ठित श्वेताम्बर साधु थे । भवानीदासने सं०१७८३ में सर्वप्रथम उनसे भेंट की। उन्होने गुरुजीके सं० १८०९ पौष बदी ८, बृहस्पतिबारको रातको स्वर्गवासी होनेकी सूचना भी अपनी कृति 'जीव विचार भाषा' मे लिखी है, जो संवत् १८१० कार्तिक सुदो १० को रचना है। कवि भवानीदास 'का रचना-काल संवत् १७९१ से संवत् १८२८ तक माना जाना चाहिए, ऐसा ही उनकी कृतियोंसे स्पष्ट है।
उनकी अधिकांश रचनाएँ भगवान् जिनेन्द्रको भक्तिसे सम्बन्वित है। वैसे उन्होंने अपनी कुछ कृतियोमे तात्त्विक चर्चा भी की है, किन्तु प्रधानता भक्ति को है । अध्यात्म बारहमासा और चेतन हिण्डोलना-जैसी रचनाओंसे यह प्रकट है