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जैन भक्त कवि : जीवन और साहित्य
अन्य रचनाएँ
गज भावना और पंचमेरु पूजा, वे रचनाएँ है, जिनका कि अभी पता चला है । ये दोनों ठोलियोंके दिगम्बर जैन मन्दिरमें विराजमान ६४८वें 'पाठसंग्रह' में निबद्ध हैं । इसी 'पाठसंग्रह' में 'वज्रनाभि चक्रवर्तिको वैराग्यभावना' नामकी रचना भी संकलित है। तीनों ही भूधरदासकी कृतियाँ है । इनमे से 'वैराग्यभावना', "जिनवाणी संग्रह' में छप भी चुकी है। बाईस परीषह भी भूधरदासकी कृति है । इनका पृथक् प्रकाशन 'जिनवाणी संग्रह' मे पृष्ठ ७०६-१५ तक हो चुका है ।
८७. निहालचन्द (वि० सं० १८वींका अन्तिम पद )
afaar निहालचन्द पार्श्वचन्द्र गच्छके वाचक हरषचन्दके शिष्य थे । उनकी रचनाओंसे उनके पारिवारिक जीवनपर कोई प्रकाश नही पड़ता। इतना अवश्य विदित होता है कि उनके जीवनका अधिकांश समय बंगालमे कटा । उनकी मातृभाषा गुजराती थी, अतः यह स्पष्ट है कि वे गुजरातमे ही कहीं उत्पन्न हुए होंगे। उनकी पाँच रचनाओं में से तीन गुजरातीमे और दो हिन्दीमे है । इनका समय संवत् १८०० के आस-पास है । निहालचन्द एक उत्तम कोटिके कवि थे ।
अभीतककी खोजोमे उनकी केवल पाँच रचनाओका पता चला है : 'मणिकदेवीरास', 'जीवविचारभाषा', 'नवतत्त्वभाषा', 'बंगालकी गजल' और 'ब्रह्मबावनी' | इनमे अन्तिम दो हिन्दीमे लिखी गयी थीं ।
ब्रह्मaratt
कविवर निहालचन्दकी यह एक प्रसिद्ध रचना है । इसीके आधारपर उन्हें महाकवि कहा जा सकता है। इसकी रचना वि० सं० १८०१ कार्तिक सुदी ६ को
१. राजस्थानके जैन शास्त्र भण्डारोंकी ग्रन्थसूची, भाग ३, पृष्ठ ३११ । २. बृहज्जनवाणी संग्रह, पृष्ठ ५६१-६५ ।
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३. पासचन्द गच्छ स्वच्छ वाचक हरषचन्द,
कीरतें प्रसिद्ध जाकी साधु मन भावनी ।
ताके चरणारविन्द पुन्यतें निहालचन्द,
कीन्ही जिन मतिते पुनीत ब्रह्मवावती ॥ बावनी, ५१ वें पकी अन्तिम पंक्तियाँ, राजस्थानमें हिन्दीके हस्तलिखित ग्रन्थोंकी खोज, भाग ४, उदयपुर, १६५४, पृष्ठ ८८