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हिन्दी जैन मक्ति काव्य और कवि
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संजय तिमिर, दूर करन रवि रूप । यह मुझ भरम मिटाइए, करें वीनती भूप ॥ अर्थात् भगवान् जिनेन्द्रको अचेतन प्रतिमा पूजक जनको पुण्य फल कैसे प्रदान करती हैं ? मुनिने जो उत्तर दिया, वह इस प्रकार है,
'जैसे चिन्तामणि रतन, मनवांछित दातार । तथा अचेतन बिम्ब यह, वांछा पूरन हार ॥ ज्यों याचत सुख कल्पतरु, दानी जन को देय । स्यों अचेत यह देत है, पूजक को सुख श्रेय ॥
afण मन्त्राधिक औषधी, हैं प्रतच्छ जड़ रूप ।
विष रोगादिक को हरै, त्यों यह अघहर भूप ॥
तपस्वी पार्श्वनाथपर कमटके जीवने बहुत बड़ा उपसर्ग किया। पार्श्वने उसे हँसते-हंसते झेल लिया । उसीका एक चित्र यहाँ उपस्थित किया गया है। यदि चित्रांकन उत्तम काव्यकी कसोटी है तो यह पद्य भी उत्तम काव्यका ही निदर्शन माना जायेगा,
“किलकिलंत बैताल, काल कजल छवि सजहिं । afare विकराल, माल मदगज जिमि गज्जहिं ॥ मुंडमाल गल धरहिं लाय लोयननि डरहिं जन । मुख फुलिंग फुंकरहिं करहिं निर्दय धुनि हन हन ॥
इहि विधि अनेक दुर्वष धरि, कमठ जीव उपसर्ग किय | तिहुं लोक बंद जिनचन्द्र प्रति, धूलि डाल निज सीस लिख ॥ ३
भगवान् पार्श्व प्रभुको केवलज्ञान उत्पन्न हुआ । इन्द्र देवताओंके साथ भगवान् के समवशरणमे आया । भगवान्की पूजा की और सिर झुकाकर स्तुति करने लगा, उसका अन्तिम पद्य है,
"तिस कारण करुणानिधि नाथ, प्रभु सनमुख जोरे हम हाथ । जबलों निकट होय निरवान, जगनिवास छूटै दुख दान ॥
तबलों तुम चरनाम्बुज वास, हम उर होहु यही अरदास । और न कछु वांछा भगवान, यह दयाल दीजै वरदान || "
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१. वही, पृष्ठ २६ |
२. वही, पृष्ठ २७ ।
३. वही ८२३, पृष्ठ ६५ ।
४. वही, आठवाँ अधिकार, १० ७३ ।