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जैन मक्त कवि : जीवन और साहित्य भूधर विलास
भूधरदासको छोटी-बड़ी रचनाओका संग्रह है। इसकी एक प्रति जयपुरके ठोलियोके मन्दिरमे वेष्टन नं० १३२ मे निबद्ध है। उसमे ११९ पन्ने हैं। एक भूधर-विलासको सूचना काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिकाके हस्तलिखित हिन्दी ग्रन्योंके चौदहवें वार्षिक विवरणमे अंकित है। इस विवरणके सम्पादक डॉ. पीताम्बरदत्त बड़थ्वाल थे । यह प्रति ग्राम-मोहना, डा०-इटौंजा, जि०-लखनऊ के रहनेवाले लाला रिखबदास जैनके पास देखनेको मिली थी। डॉ० बड़थ्वालने सम्पादकीय टिप्पणीमे लिखा है, "भूधरदासजीकी इन रचनाओमें कुछ तो स्वतन्त्र है और कुछ अनुवाद है। भाषामे यद्यपि कविका लक्ष्य व्रजभाषाकी ओर झुका हुआ है फिर भी उन्होने कही-कहीं स्वतन्त्रतासे खड़ीबोलीका भी प्रयोग किया है। थोड़ा-सा प्रयोग गुजरातीका भी है।" "भूधर-विलास' जिनवाणी प्रचारक कार्यालय कलकत्तासे प्रकाशित हो चुका है। इसमे ५३ पद्य हैं।
भूधरदासका विश्वास है कि यदि भवसागरको पार करना चाहते हो तो भक्तिरूपी जहाज सजाओ, "भूधर जो भवसागर तिरना, भक्ति जहाज सजो ॥" वे भगवान्के नाममे असीम बल मानते है। यदि किसाने भजन-सुधारससे अपनी रसनाको नहीं धोया, तो वह व्यर्थ है। "भजन सुधारस सों नहिं धोई, सो रसना किस काम की ॥
जपि माला जिनवर नाम की ॥३९॥" भक्तने भगवान् अजितनाथसे प्रार्थना की कि है भगवन् ! तुम कल्पवृक्षके समान हो, मेरी मनोकामना पूरी करो। मुझे हाथी-घोडा नहीं चाहिए, मेरे हृदयमे तो आप तबतक बसो, जबतक मुझे मोक्ष न मिल जाये।
"तुम त्रिभुवन में कलप तरुवर, श्रास भरो मगवान जी ।। ना हम माँगे हाथी घोड़ा, ना कछु संपति आन जी।
भूधर के उर बसो जगत गुरु, जब लौं पद निरवान जी ॥३६॥" पदसंग्रह
भूधरदासका 'पदसंग्रह' बहुत पहले ही प्रकाशित हो चुका है । एक 'पदसंग्रह' जयपुरके पण्डित लूणकरजीके मन्दिरमे गुटका नं० १२९ और वेष्टन नं० ३३३ मे निबद्ध है । वैसे तो भारतके विभिन्न जैन भण्डारोंके विविध गुटकोमे भूधरदासके पद
१. काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिका "खोजमें उपलब्ध, हस्तलिखित हिन्दी
ग्रन्थोंका चौदहवाँ त्रैवार्षिक विवरण, १९२६-३१" परिशिष्ट १। २. वही ।