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हिन्दी जैन मक्ति काव्य और कवि
भगवान् सिद्धने ध्यानरूपी अग्निमे कर्मरूपी शत्रुओंको झोककर जला डाला है । उन्होंने दिव्य ज्ञानकी किरणोंसे संसारके जीवोंका शोकरूपी अन्धकार नष्ट कर दिया है । वह भगवान् सिद्धलोकमे बसते है । भक्त उनके चरणोकी त्रिकाल धूलि लेते हुए अपनेको गौरवान्वित मानता है ।
"ध्यान हुताशन में अरि ईंधन झोंक दियौ रिपु रोक निवारी | शोक हस्यो मविलोकन कौ वर, केवल ज्ञान मयूख उधारी ॥ लोक अलोक विलोक भये शिव, जन्म जरामृत पंक पखारी । सिद्धन थोक बसै शिवलोक, तिन्हें पगधोक त्रिकाल हमारी ॥११॥| "
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भगवान् नेमिनाथकी स्तुति करते हुए भक्त कहता है कि ऐ भगवन् ! जिस तरह आपने उग्रसेन कुमारीके जन्मकादि दुःखोंको नष्ट कर दिया, ठीक वैसे ही मुझे भी इस संसार - जाल से मुक्त कर दो । भक्तको भगवान्की इस शक्तिमे विश्वास है,
"शोमित प्रियंग अंग देखें दुख होय भंग, लाजत अनंग जैसे दीप भानु भासतें । बाल ब्रह्मचारी उग्रसेन की कुमारी जादौनाथ तैं निकारी जन्मकादौ दुखरास तं ॥ मोम भवानन में आन न सहाय स्वामी, अहो नेमि नामी तकि आयो तुम तास तैं । जैसे कृपाकन्द बन जीवन की बन्दि छोरि, ही दास को खलास कीजै भवपास
॥७॥
भक्तका विश्वास सच्चे देवमे है। जिस किसीमे भी सच्चे देवके लक्षण हो, भक्त उसकी वन्दना करनेको तैयार है। ऐसी उदारता बहुत कम भक्तोंमे देखो गयी है । प्रायः भक्त ऐसे रहे है जो सचाईको नही किन्तु देव - विशेषके उपासक होनेमे ही अपना अहोभाग्य समझते हैं । भूधरदास उन अन्य भक्तोंमे नही है । आचार्य समन्तभद्रकी भाँति उनकी भी एक कसौटी है, जिसपर खरा उतरनेवाला ही उनका आराध्य हो सकता है । देखिए,
"जौ जगवस्तु समस्त, हस्त तल जेमनिहारे । जगजन को संसार, सिंधु के पार उतारै || आदि-अन्त अविरोधि, वचन सबको सुखदानी । गुन अनन्त जिहमाहिं, रोग की नाहिं निशानी ॥ माधव महेश ब्रह्मा किधौं, वर्धमान के बुद्ध यह ।
ये चिन्ह जान जाके चरन, नमो नमो मुझ देव वह ||४६ ॥ *
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