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________________ जैन भक्त कवि : जीवन और साहित्य चौबीसी स्तुतिपाठ दि० जैन मन्दिर बड़ौतके एक गुटकेमे खुशालचन्दजीको चौबीस स्तुतियां संकलित है। इस गुटकेका लेखनकाल सं० १८३२ है। पूरा गुटका उनकी स्तुतियोंसे ही पूर्ण हुआ है। प्रत्येक स्तुतिके अन्तमे अपने नामके लिए केवल 'चन्द' का प्रयोग किया गया है। ___माराध्यको सर्वोत्तम और अपनेको लघुतम मानना भक्तिको प्रथम विशेषता है । कही तो भक्त कहता है कि हमारे आराध्यको सुर, नर, शेष सदैव सेवा करते है, भ्रमरके समान उनके चरण-कमलको ओर दिन-रात लगे रहते है, कहीं कहता है कि भगवान्की भक्तिरूपी नौकापर चढ़कर प्रत्येक जीव भवसागरके पार हो जाता है । यह सच है कि भगवान्के समान कोई शिवनायक और सुविधाम नही है । वे अविनाशी पद प्रदान करते है। यह जानकर हो भक्त उनकी शरणमे जाता है। उसे पूरा विश्वास है कि वे संसार दु.खसे दूर कर देंगे। ऐसे महिमावान् प्रभुसे उसका प्रेम हो गया है। वह भव-भवमे उनकी सेवाका अधिकार चाहता है। "सुर नर सेस सेवा करै जी, चरन कमल की वोर । मंवर समान लग्यौ रहै जी निसि वासर अरु मोर ।। जे जस गावै भाव सौ करत आपणो काज । भवसागर को पार कै जी, चढ़ी तुम नाव जिहाज ।। तम सम अवरज को नहीं प्रभ सिवनायक सषधाम । अविनासी पद देत हो प्रभू फिर नहीं जग सों काम ।। दाता लषि मैं जाचियो जी कीजे मोहि हू पार । भव दुष सौ न्यारौ रहो प्रभू राषो सरण आधार ।। चंद करै या बिनती जी सुणिज्यौं त्रिभुवनराई । जन्म जन्म पाऊं सही प्रभु तुम सेवा अधिकार ॥" ८६. भूवरदास (वि० सं० १७८३) भूधरदासको रचनाओसे केवल इतना ही पता चलता है कि वे आगराके रहनेवाले थे और खण्डेलवाल जातिमे उत्पन्न हुए थे। पण्डित दौलतरामजीने उन्हे १. गुटका नं० ४७, दि० जैन पंचायती मन्दिर, बड़ौत, सम्भवनाथजीकी बीनती। २. आगरे में बालबुद्धि भूधर खंडेलवाल, बालक के ख्याल सो कवित्त करि जाने है । भूधरदासे, जैनशतक, कलकत्ता, १३वें पद्यकी प्रथम दो पंक्तियाँ।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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