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________________ जैन भक्त कवि : जीवन और साहित्य चतुर्विंशति जिनस्तुति यह स्तुति उपर्युक्त मन्दिरके ही गुटका नं० १०२ वेष्टन नं १९०९ मे अंकित है । भगवान् पार्श्वनाथकी स्तुतिमे रचा गया एक छप्पय देखिए, "अश्वसेन नृप पिता देवि वांमा सुमाता । हरित काय नव हाथ वरषस्त आयु विष्याता वाणारसी सु जन्म वंश इक्ष्वाकु मंझारी लछिन सरप जु वन्यौ प्रभु उपसर्ग निवारी ३३३ गणवर जुभये दश ग्यान घर कोस पाँच समवादि मनि । श्री पार्श्वनाथ वंदौ सदा कमठ मान वनदव अगनि ||२८|| " किशनसिंहजीने भक्तिसम्बन्धी अनेक गोत और स्तुतियोकी रचना की है। इनका संकलन उपर्युक्त मन्दिरके ही गुटका नं० ५०२ में किया हुआ मौजूद है । इस गुटके २०२ पृष्ठ है, जिनमे से पृष्ठ ५५ तक तो किशनसिहका ही रचा हुआ 'भद्रबाहुचरित भाषा' लिखा है, और अवशिष्टपर उनकी भक्तिसम्बन्धी छोटीछोटो रचनाएँ निवद्ध है । वे इस प्रकार है, 'श्रावक मुनि गुण वर्णन गीत,' 'चौबीस दण्डक' (सं० १७६४), ' णमोकार रास' (१७६० ), 'जिनभक्ति गीत', 'गुरुभक्ति गीत,' 'चेतन लोरी', 'निर्वाणकाण्ड भाषा' ( सं० १७८३, संग्रामपुर ) इसी गुटकेमें उनकी 'एकावली व्रत कथा' और 'लब्धि विधान कथाएँ' भी संकलित हैं। 'लब्धि-विधान कथा' की रचना सं० १७८२ मे आग में हुई थी। ८५ खुशालचन्द काला ( वि० सं० १७७३ ) खुशालचन्दका जन्म सांगानेरमें हुआ था । उनके पिताका नाम सुन्दर और माता का नाम अभिवा था । मूलसंघी पण्डित लक्ष्मीदास उनके गुरु थे । उन्हें इन्द्र के समान ख्याति प्राप्त हुई थी । उनके पास विशद ज्ञान था, जिसका १. यह स्तुति वि० सं० १७६६ वैशाख कृष्णा त्रयोदशी सोमवार के दिन पूर्ण हुई थी, ऐसा इस स्तुतिके ३२वे पद्यसे स्पष्ट है। यह इस स्तुतिका अन्तिम पद्म है । २. और सुणी आगे मन लाय, में सुन्दर को नंद सुभाय । सिंह तिया अभिषा मम माय, ताहि कूंखि में उपजू आय । चंद खुशाल कहै सब लोक, भाषा कीनी सुणत असोक ॥ व्रत कथाकोश, प्रशस्ति, प्रशस्तिसंग्रह, पृ० २५७
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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