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________________ ३३० हिन्दी जैन भक्ति-काव्य और कवि रात्रि-भोजन-कथा ___ इसको 'नागश्री कथा' भी कहते है। इसकी एक प्रति पंचायती मन्दिर दिल्लीके हस्तलिखित ग्रन्थोंमें मौजूद है । इसमे २८ पृष्ठ है । इसपर रचनासंवत् १७७३ पड़ा हुआ है। इसकी दूसरी प्रति 'नागश्री कथा' के नामसे जयपुरके बधीचन्दजीके मन्दिरके वेष्टन नं० ६०८ मे निबद्ध है। उसके आगे भी रचनासंवत् १७७३ ही दिया हुआ है। पण्डित नाथूरामजी प्रेमीने भी किसी प्रतिके आवारपर यही रचनाकाल निर्धारित किया है। इसकी एक प्रति आमेरके शास्त्रभण्डारमे रखी है। इसमे कुल २६ पृष्ठ है, जिनपर ४१५ पद्य अंकित है। इस कथाका आरम्भिक पद्य इस प्रकार है. "समोसरण सोमा सहित जगत पूज्य जिनराज । नमौ त्रिविध भवदधिन को तरण विरुद्ध जिहाज ।। जिन मुख अंबुज खरी, स्याद्वाद मय सोय । ता स्वर सुति कौं भाव धरि, नमौं सकल मद खोय ॥" बावनी इसको एक प्रति जयपुरके बड़े मन्दिरके वेष्टन नं० १२६७ मे निबद्ध है । इसमे कुल १८ पृष्ठ है । इसपर रचनाकाल सं० १७६३ पड़ा है। अगरवन्दजी नाहटाने बावनियोका एक छोटा-सा संकलन, 'राजस्थानमे हिन्दीके हस्तलिखित अन्थोंकी खोज', भाग चतुर्थ ( पृष्ठ ८३ ) पर दिया है, जिसमे किशनकी बावनी भी है। यह प्रति बीकानेरके 'अभय जैन ग्रन्थालय' मे मौजूद है । इसपर रचनासंवत् विजयदशमी १७६७ पड़ा है। उसका आदि मंगलाचरण देखिए, "ऊंकार अपर अपार अविकार अज भजरजु है उदार, दादनु हुश्न को। कुंअर ते कीट परजंत जग जंतु ताके, अंतर को जामी बहुनामी सामी संत को। १. अनेकान्त वर्ष ४, किरण ६, ७, पृ० ५६३ । २. हिन्दी जैन साहित्यका इतिहास, पृ० ६६ । ३. सिरि सिंघराज लोकां गछ सिरताज, आज तिन की कृपा जू कविताई पाई पावनी। संवत सतर सतसठे विजेदसमी की, ग्रन्थ की समापत भई है मनभावनी ।। अभय जैन ग्रन्थालयकी प्रति ।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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