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जैन भक्त कवि : जीवन और साहित्य
"नमो सकल परमातमा, रहित अठारह दोष । छियालिस गुन प्रमुष जे, है अनंत गुन कोष । आचारज उवझाय गुरु, साधु त्रिविध निरग्रन्थ ।
भवि जगवासी जननि को, दरसा सिव पंथ ॥" भद्रबाहु चरित
इसकी एक प्रति नया मन्दिर दिल्लीके शास्त्रभण्डारमें मौजूद है। इसमें ३६ पृष्ठ हैं । यह प्रति वि० सं० १९२९ की लिखी हुई है । इसकी रचना हिन्दी-पद्यमें हुई थी। दूसरी प्रति जयपुरके ही ठोलियोंके दिगम्बर जैन मन्दिरके वेष्टन नं० ७८ में बंधी रखी है । इसमे ३५ पृष्ठ है। इसपर रचनाकाल सं० १७८३ पडा हुआ है। इसी मन्दिरके गुटका नं० २५ मे भी 'भद्रबाहुचरित' संकलित है । यह एक नवीन प्रति है और इसपर रचनासंवत् १७८३ पड़ा है, जिसका समर्थन उसको अन्तिम प्रशस्तिसे होता है। इसमें आचार्य भद्रबाहुका चरित्र अंकित है । भद्रबाहु मन्तिम श्रुतकेवली थे और उनको भक्तिमें विपुल साहित्यका निर्माण होता रहा है, उन्हींमे-से एक प्रस्तुत रचना भी है। इसका आधार आचार्य रत्न. नन्दिके द्वारा विरचित संस्कृतके 'भद्रबाहु चरित' को बताया गया है। किशनसिंहके 'भद्रबाहु चरित' में भाव और भाषा दोनों ही उत्तम कोटिके हैं। आदिका एक पद देखिए,
"केवल बोध प्रकास रवि उदै होत सखि साल। जग जन अन्तर तम सकल छेयो दीन दयाल । सनमति नाम जु पाइयो जैसे सनमति देव । मोको सनमति दीजिए नमो त्रिविध करि सेव।"
१. नया मन्दिर दिल्लीके 'अ २९' पर निबद्ध 'भद्रबाहु चरित' देखिए । २. संवत सतरह से असी उपरि और है तीन ।
माघ कृष्ण कुज अष्टमी ग्रन्थ समाप्त कीन ॥२०॥
गुटका नं० २५, मन्दिर ठोलियान, जयपुर । ३. मूल-ग्रन्थ कर्ता भये रतन नन्दि सु जानि ।
तापरि भाषा प्रहरि कोनी मती परमान ॥१॥ किसनसिंह विनती कर, लखि कविता की रीति । बह चरित भाषा कियौ, बालबोध धरि प्रीति ॥१७॥ वही, प्रशस्ति ।