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________________ ३२२ हिन्दी जैन भक्ति-काव्य और कवि अन्य रचनाएँ 'पंच कल्याणक कथा'की प्रति दिल्लीके पंचायतो दि० जैन मन्दिर में मौजूद है । 'नौका बन्ध' नामकी रचना जयपुरके पं० लूणकरजीके मन्दिरमे गुटका नं १०३ मे निबद्ध है। 'सुमति कुमतिकी जखड़ी' जयपुरके बडे मन्दिरके वेष्टन नं० २१३४ में बंधी रखी है। इसपर लेखनकाल सं० १७८९ पडा है । विनोदीलालने 'सम्यक्त्व कौमुदी'की रचना वि० सं० १७४९ मे की थी। 'विष्णुकुमारमुनिकथा' और 'श्रीपाल विनोद कथा' दोनों ही विनोदीलालकी कृतियाँ है । वे नया मन्दिर दिल्लीके शास्त्रभण्डारमें मौजूद है । 'श्रीपाल विनोद'की रचना वि०सं० १७५० में हुई थी 'षट्कर्मोपदेश रत्नमाला' की रचना वि० सं० १८१८ मे हुई । इसकी प्रति अछनेरा ( आगरा )मे मौजूद है। यह अनुष्टुप् छन्दोमे लिखा • गया है। ८३. बिहारीदास (वि० सं० १७५८ ) पण्डित बिहारीदास आगरेके रहनेवाले थे। उनकी गणना उत्तम कोटिके विद्वानोमे की जाती थी। जैन हिन्दी भक्ति-साहित्यके प्रसिद्ध कवि द्यानतराय उन्हीके शिष्य थे। उन्होंने अनेक स्थानोपर अपने गुरुका नामोल्लेख किया है। उस समय आगरेमे दो ही विद्वान् थे, पं० मानसिह जौहरी, जिनको 'सैली' चलती थी और पण्डित बिहारीदास । विहारीदास कवि भी थे और उन्होने सर्वत्र 'विहारी' का प्रयोग किया है। कही-कही अपनेको बिहारीलाल भी लिखा है, किन्तु ये 'सतसैयाकार'से स्पष्ट रीत्या पृथक् है। वैसे भी बिहारी अथवा बिहारीलाल नामके कई कवि हुए है । उनमें से एक तो कायस्थ थे, जो ओरछाके रहनेवाले थे। उनका रचनाकाल सं० १८१० माना जाता है। दूसरे वे थे जिनका उल्लेख 'काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिका के द्वितीय त्रैवार्षिक रिपोर्ट में हुआ है। इन्होंने सं० १८२० मे 'नखशिख संवत् सत्रह से सैंताल। सावन सुदी दुतिया रविवार ॥ देखिए वही। १. काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिकाका हिन्दीके हस्तलिखित ग्रन्थोंका पन्द्रहवां त्रैवार्षिक विवरण। २. मिश्रबन्धु विनोंद, भाग २, पृ० ७०७ ।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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