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________________ जैन भक्त कवि : जीवन और साहित्य अन्त "गिरनेरगढ़ सुहाया, सुख दिल पसंद आया तहां जोग चित लाय तन कहां गया है । शुभ ध्यान चित दीन्हां नवकार मंत्र लीन्हा, परहेज कर्म किया है ॥ स्त्रीलिंग छेद कीन्हा पुल्लिंग पद लीन्हा ससद रहे स्वर्ग पहुंची ललितांग पद भया है। खुस रेखत बनाये लाल विनोदी गाये अनुसाफ दर्प ढाते, राजुल का भया है ॥" ३१९ प्रभात जयमाल इसे 'मंगल प्रभात' और 'नेमिनाथजीका मंगल' भी कहते है । इसकी रचना वि० सं० १७४४ मे हुई थी । इसकी एक प्रति जयपुरके ठोलियोंके जैन मन्दिर के एक पाठसंग्रहमे निबद्ध है । इसकी एक दूसरी प्रति पंचायती दिगम्बर जैन मन्दिर दिल्ली में मौजूद है। इसमें भगवान् नेमिनाथकी भक्तिमे कतिपय मुक्तक पद्योंका निर्माण हुआ है । सभी भक्ति से ओतप्रोत है । प्रातःकाल उठकर उनका उच्चारण करनेसे शुभ- गति मिलती है । चतुर्विंशति जिन स्तवन सवैयादि इसकी प्रति वि० सं० १८३९ भाद्रपद कृष्णा तृतीया शुक्रवारकी लिखी हुई बीकानेर के अभय जैन ग्रन्थालय मे मौजूद है ।' यह श्रावक वेणीप्रसादके बाँचनेके लिए लिखी गयी थी । इसमे कुल ७९ पद्य हैं और सभी सवैया है । इसके प्रारम्भके ८-९ पद्य आदिनाथके, फिर नवकार, १२ भावना और पार्श्वनाथ के सर्वये है । पद्मांक ४७ से आगे प्रत्येक छन्दमे एक-एक तीर्थंकरकी क्रमशः स्तुति है । प्रथम तीर्थंकर आदिनाथकी वन्दना करते हुए भक्त कहता है, " जाके चरणारविन्द पूजित सुरिंद इंद देवन के वृन्द चंद सोमा अति भारी है । जाके नख पर रवि कोटिन किरण वारे मुख देखे कामदेव सोमा छविहारी है ॥ जाकी देह उत्तम है दर्पन-सी देखियन अपनों सरूप भव सात की विचारी है । कहत विनोदीलाल मन वचन तिहुकाल ऐसे नाभिनंदन कूं वंदना हमारी है ॥" फूल माल पच्चीसी जैसा कि इसके नामसे स्पष्ट है, इसमें कुल २५ पद्य है । दोहा, छप्पय और नाराच छन्दोंका प्रयोग किया गया है। इसका प्रकाशन 'बृहद् महावीर कीर्तन' नामकी पुस्तक हो चुका है। विषय भक्ति से सम्बन्धित है। तीर्थंकर नेमिनाथ के १. राजस्थानमें हिन्दीके हस्तलिखित ग्रन्थोंकी खोज, भाग ४, उदयपुर, पृष्ठ ११८ २. बृहद् महावीर कीर्तन, श्री दिगम्बर जैन पुस्तकालय, महावीरजी, जयपुर. जनवरी १६५३ ई०, पृष्ठ २१६-२१६ ।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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