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जैन मक्त कवि : जीवन और साहित्य देशान्तरी छन्द ___ इसमे ३९ पद्य है । इसमें भगवान् पार्श्वनाथको भक्तिका उल्लेख है । इसकी एक प्रतिको पालणपुरमे श्री तेजविजय गणिने सं० १९०१ पौस सुदी ११ को लिखा था। इसमे 'त्रिभंगी' छन्दोंका प्रयोग किया गया है। प्रारम्भमे ही देवी सरस्वतीकी वन्दना है।
"सुवचन खूपों सारदा, मया करो मुझ माय तो सुप्रसन सुवचनतणों, तुमणा न होवे काय ॥ कालीदास सरिखा किया, रंक थकि कविराज,
महेर कार माता मुणे, निज सुत जाणी निवाज ॥" अन्य रचनाएँ
उपर्युक्त कृतियोंके अतिरिक्त इनकी अन्य रचनाएं भी उपलब्ध है। 'अभयंकरत्रीमती चौपई', 'अमरकुमार रास', 'विक्रमादित्यपंचदण्डचौपई', 'रत्नहास चौपई', 'कवित्व बावनी', 'छप्पय बावनी', 'भरत बाहुबली मिडाल छन्द', 'बीकानेर चौबीसटा-स्तवन', 'शतकत्रयटबा', और स्तवनादिका नाम श्री अगरचन्दजी नाहटाने गिनाया है। ___ अठारहवीं शताब्दीका दूसरा पाद ही उनके साहित्यका निर्माणकाल माना जा सकता है । वे इस शताब्दीके महत्त्वपूर्ण साहित्यकार थे।
८२. विनोदीलाल (वि० सं० १७५०)
विनोदीलाल साहिजादपुरके रहनेवाले थे। उसको शाहजहाँदपुर भी कहते है। शायद इस नगरको स्थापना बादशाह शाहजहांके नामपर हुई थी। यह गंगाके किनारेपर बसा हुआ एक रमणीक स्थान था। उसकी प्रशंसा करते हुए कविने लिखा है, "कौशल देशके मध्यमे 'शाहिजादपुर' नामका एक नगर है। वह गंगाके किनारे बसा हुआ अपनी छटामे अनुपम है। उसकी तुलना अन्य कोई नगर नही कर सकता। उसमे बड़े-बडे महाजन और श्रावक रहते है। सभी अपने-अपने धर्ममे लोन है । श्रावकोंका जैन धर्ममे दृढ़ श्रद्धान है। वहाँ भगवान् जिनेन्द्रके तीन चित्र-विचित्र चैत्यालय है, जिनमे विविध प्रकारसे धर्मध्यान होता ही रहता है । उस नगरमें यतियों और व्रतियोंका अत्यधिक आदर-सम्मान होता
१. वही, पृष्ठ १२५४ ।