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हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि
और १८६८ मे लिखो गयो प्रतियोंका उल्लेख 'जैन गुर्जरकविओ' में हुआ है ।'
इसका प्रारम्भिक सवैया इस भाँति है,
" प्रणमि चरणयुग पास जिनराज जू के,
विधि के चूरण हैं पूरण है आस के । दिढ दिलमांझि ध्यान धरि श्रत देवता को,
सेवैतै संपूरत है मनोरथ दास के ॥ ज्ञान हग दाता गुरु बड़े उपगारी मेरे,
दिनकर जैसे दीपै ज्ञान परकास के । इनके प्रसाद कवि राज सदा सुखकाज,
सवीये बनावत है भावना- विलास के ॥१॥"
चेतन बत्तीसी
।
इसमे ३२ पद्य है इसकी रचना सं० १७३९ मे हुई थी। इसकी क प्रति मुनि हीरानन्दने सं० १७४१ आसोज बदी ८ को लिखी थी, जो नाहटा संग्रह मौजूद है | एक दूसरी प्रति और है, जो सं० १८६८ मे लिखी गयी थी । यहाँ भ्रमाकुलित चेतनको चेतानेका प्रयास किया गया है
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"चेतन चेत रे अवसर मत चूके, सीख सुणे तूं साची ।
गाफिल हुई जो दाव गमायौ, तौ करसि बाजी सहु काची ॥१॥ उपदेश बत्तीसी
इसमे भी ३२ पद्य है । आत्माको सम्बोधन कर उसको विकृत पथसे निरत करने की बात कही गयी है। दो पद्य इस प्रकार है, "आतमराम स्याणे तूं झूठे भरम भुलाना
किसके माई किसके भाई, किसके लोक लुगाई जी,
तू न किसी का को नहीं तेरा, आपो आप सहाई ॥ १ ॥
इस काया पाया का लाहा, सुकृत कमाई कीजै जी, राज कहे उपदेश बत्तीसी, सद्गुरु सीख सुखीजै जी ॥२॥"
१. जैन गुर्जर कवि, खण्ड २, भाग ३, पृ० १२४६ ॥
२. सुवच एह अमीरस सरिखा, पंडित श्रवणे पीसी,
सतरहसे गुणयालें संवत, बोले राज बतीसी ॥३२॥
चेतन बत्तीसी, जैन गुर्जरकविओो, खण्ड २, भाग ३, पृष्ठ १२५० ॥ ३. वही, पृष्ठ १२५० ।
४. वही, पृष्ठ वही ।