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________________ जैन मक्त कवि : जीवन और साहित्य सवैया बावनी इसमे ५८ सवैये है। इसकी रचना संवत् १७३८ मगसिर सुदी ६ को हुई थी। इसकी एक प्रति संवत् १७३८ मगसिर शुक्ला ६ की ही लिखी हुई मौजूद है, उसका उल्लेख श्री मोहनलाल दुलीचन्दजी देसाईने किया है।' नेमि-राजुल बारहमासा एक प्रौढ़ रचना है। सवैयोंमे लिखी गयी है। कुल १४ पद्य है। रचना भगवान्के प्रति दाम्पत्यविषयक रतिका समर्थन करती है। इसको एक प्रति अभय जैन ग्रन्थालय बीकानेरमे मौजूद है। इसके दो सवैये देखिए जो भाषा, भाव और शैली सभी दृष्टियोसे उत्तम कहे जा सकते है, "उमटी विकट घनघोर घटा चिहुँ ओरनि मोरनि सोर मचायो। चमके दिवि दामिनि यामिनि कुंभय मामिनि कुं पिय को संग मायो । लिव चातक पीउ ही पीड़ लई, मई राज हरी भुंइ देह छिपायो। पतियां पै न पाई री प्रीतम की अली, श्रावण आयो पै नेम न आयो॥ ज्ञान के सिंधु अगाध महाकवि मेसर छीलर नीर निवासो। . हैं जु महाकवि तो दिन राज से, मेरो निसाकर कौ सौ उजासो। ताते करूं बुध सुं यह वीनति, मेरी कहुं करियौ जनि हांसो। आपनी बुध सूं राज कहै यह, राजल नेमि को बारह मासो ॥१४॥" भावना-विलास इसकी रचना संवत् १७२७ पौष वदी १० को हुई थी। इसमे जैनधर्मसम्बन्धी बारह भावनाओंका आकर्पक ढंगसे वर्णन हुआ है। सवैयोंका यहाँपर भी प्रयोग किया गया है। यह रचना भूधरदासके 'राजा राणा छत्रपति से भी अधिक रोचक है। इसकी एक प्रति बीकानेरके अभय जैन ग्रन्थालयमे मौजूद है। इसको मुनि हर्षसमुद्रने नापासरमे सं० १७४१ आसोज १४ को लिखा था। संवत् १८५४ १. जैन गुर्जरकविओ, खण्ड २, भाग ३, पृ० १२४६-५० । २. द्वीप युगल मुनि शशि वरसि, जा दिन जन्मे पास । ता दिन कीनी राज कवि, यह भावना विलास ॥५१॥ भावना विलास, राजस्थानमें हिन्दीके हस्तलिखित ग्रन्थोंकी खोज, भाग ४, पृ० १५२ । ३. वही, पृष्ठ १५२ ।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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