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________________ ३०८ हिन्दी जैन मक्ति-काव्य और कवि फटे पडल अज्ञान के, जागी ज्योति उदारा। अंतरजामी मैं लख्यौ, आतम अविकारा ॥ तू करता सुख संग कौ, वंछित फलदाता | और ठौर ठौर राचे न ते, जे तुम संग राता ॥ सकल अनादि अनंत तू, भत्र मय तैं न्यारा । मूरख भाव न जान ही, संतन कूं न्यारा ॥ परमातम प्रतिबिंब सी, जिन मूरति जानै । ते पूजित जिनराज कूं, अनुभव रस मांने ॥" महावीर गौतम स्वामी छन्द इसका निर्माण सं० १७४१ से पहले ही हो गया था। इसमें ९६ पद्य है। सभी भगवान् महावीर और उनके प्रमुख गणधर गौतमको भक्ति से युक्त है । इसकी दो प्रतियोका उल्लेख श्री मोहनलाल दुलीचन्दजी देसाईने किया है, वे क्रमशः संवत् १७४१ और १७८५ की लिखी हुई है। उन्होने दोनोंकी सूचना नाहटा संग्रह से प्राप्त की थी। उसका आदि और अन्त देखिए, " वर दे तुं वरदायिनी, सरसति करि सुप्रसाद । वांचु वीर जिणंदसुं गौतम गणधरवाद ॥ १ ॥ पाठक लक्ष्मीकीर्त्ति प्रगट, सुप्रसादै सरस्वती तणै । गौतमवाद निज ज्ञान सम, रसिक 'राज' इण विध मणे ॥९६॥ " दूहा बावनी श्री नाहटाजीने इसकी दो प्रतियोंका उल्लेख किया है, जो अभय जैन पुस्तकालय में मौजूद है । पहली प्रतिको श्री हीरानन्द मुनिने संवत् १७४१ पौस सुदी १ मे लिखा था । दूसरी प्रति संवत् १८२१ आश्विन बदी ७ को लिखी हुई है, जिसको भुवनविशाल गणिके शिष्य फहदचन्दने लिखा था । उसका आदि और अन्त इस प्रकार है, "ऊं अक्षर अलख गति, धरूँ सदा वसु ध्यान | सुर नर सिद्ध साधक सुपरि, जाकुं जपत जहांन ॥१॥ दोहा वावनी करी, आतम परहित काज । पढत गुणत वाचत लिखत, नर होवत कविराज ॥ ५८ ॥ १. जैन गुर्जरकविश्रो, खण्ड २, भाग ३, १० १२५१ । २. राजस्थानमें हिन्दीके हस्तलिखित ग्रन्थोंकी खोज, भाग ४, पृ० ८६ ।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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