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नैन भक्त कवि : जीवन और साहित्य
८१. लक्ष्मीवल्लभ ( १८वीं शताब्दीका दूसरा पाद )
आप खरतरगच्छोय शाखाके उपाध्यक्ष लक्ष्मीकीतिजीके शिष्य थे। उनके लिए 'अमरकुमार-चरित्र-रास'में 'वाणारसी लखमीकिरति गणी'का प्रयोग हुआ है। इससे सिद्ध है कि वे बनारसके रहनेवाले थे । अवश्य ही विद्वत्ताके क्षेत्रमे उनकी विशेष ख्याति रही होगी। लक्ष्मीवल्लभने उन्हीके चरणोमे बैठकर अपनी शिक्षा-दीक्षा आरम्भ की थी। कुछ ही समयमे वे व्युत्पन्न हो गये और उन्होंने विपुल साहित्यका निर्माण किया। उनका हिन्दी, राजस्थानी, गुजराती और संस्कृत चारो भाषाओपर समानाधिकार था। संस्कृतमे निर्मित हुए उनके साहित्यसे यह प्रमाणित है कि वे उच्चकोटिके विद्वान् थे। 'कल्पसूत्र' और 'उत्तराध्ययन'की जिसने वृत्तियां लिखी है, वह कोई साधारण विद्वान् नही हो सकता। 'कालकाचार्य' तथा 'पंचकुमार कथा', 'कुमारसम्भव वृत्ति' और 'मात्रिकाक्षरधर्मोपदेश स्वोपज्ञवृत्ति' भी उन्हीकी संस्कृत कृतियां है।
उनकी हिन्दी रचनाओपर गुजरातीका अधिक प्रभाव है। वैसे भाषा परिमार्जित है, और उसमें संस्कृतके तत्सम शब्दोका अधिक प्रयोग हुआ है। चौबीस स्तवन
यह स्तवन चौबीस तीर्थंकरोंकी भक्तिसे सम्बन्धित है। इसकी दो प्रतियां अभय जैन पुस्तकालय बीकानेरमे मौजूद है। पहली प्रति पीपासर गाँवमे सं० १७५५ माह बदी ४ को लिखी गयी थी। और दूसरीको किन्ही सुखरत्न गणिने सं० १७९० फाल्गुन बदी ४ गुरुवारको मुल्तानमे लिखा था। दोनों ही मे चार-चार पन्ने है। यह एक मुक्तक काव्य है । पदोको रचना राग-रागिनियोंमे की गयी है । आदिका एक पद्य है,
"आज सकल आनंद मिले, आज परम आनंदा ।
परम पुनीत जनम भयो, पेखे प्रथम जिनंदा । १. उपाध्याय श्री लखमीकीरति शिष्य, लखमिवल्लभ मति सारइ ।
छोपी करी बार ढाल करि, भवीयणनई उपगारइ । रत्नहास चौपई, जैन गुर्जरकविओ, खण्ड २, भाग ३, पृ० १२५३ । २. खेम साख श्री खरतर गच्छ भणी,
वाणारसी लखमोकीरति गणि । जैन गुर्जरकविओ, खण्ड २, भाग ३, पृ० १२४७ । ३ राजस्थानमें हिन्दीके हस्तलिखित ग्रन्थोंकी खोज, भाग ४, पृ० २२-२३ ।