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________________ ३०२ हिन्दी जैन भक्ति-काव्य और कवि दिया हुआ है । 'चित्तौड़ गजल' इसके पहले ही बनी थी। खेतल जती खेता कहे जाते थे। उन्होने एक स्थानपर जतीके गुणोको गिनाया है । वे एक उदार साधु थे। उन्होंने भगवान् जिनेन्द्रके साथ-साथ अन्य देवी-देवताओंको भी नमस्कार किया है । उनको गजलें वर्णनात्मक होते हुए भी रस-युक्त हैं। खेतलको बावनी जिनेन्द्र भक्तिसे सम्बन्धित है। 'जैन यती गुण वर्णन' भी उन्हींकी कृति है। चित्तौड़की ग़ज़ल __ इस गजलको मुनि कान्तिसागरजीने फार्बस गुजराती साहित्य सभा बम्बईके त्रैमासिक पत्रमे छपवाया है । इसकी एक दूसरी प्रति 'अभय जैन ग्रन्थालय' बोकानेरमे मौजूद है। उसका सक्षिप्त परिचय श्री अगरचन्दजी नाहटा-द्वारा सम्पादित 'राजस्थानमे हिन्दीके हस्तलिखित ग्रन्थोकी खोज, द्वितीय भाग' में प्रकाशित हो चुका है। इसके पचपनवे पद्यके अनुसार इसका रचनाकाल स० १७४८ श्रावण बदी १२ मानना चाहिए। वह राणा जयसिंहका समय था। इसमे कुल ५६ पद्य है। उदयपुरकी ग़ज़ल यह 'भारतीय विद्या' के वर्ष १ अंक ४ मे मुनि जिनविजयजी-द्वारा सम्पादित होकर प्रकाशित हो चुकी है। परन्तु इसमें रचना-संवत् नही है। इसकी दूसरी प्रति अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर में मौजूद है, और उसका संक्षिप्त परिचय 'राजस्थानमे हिन्दीके हस्तलिखित ग्रन्थोंकी खोज, द्वितीय भाग'मे छप चुका है। उसपर रचना-संवत् पड़ा हुआ है। प्रारम्भमे हो कविने एकलिंगजी, नाथद्वारेके श्रीनाथजी, राठसेन गिरिदेव, आवेरी उमारमण, भुवाणा भोलानाथ, और १. संवत सतरे सतावन, मगसिर मास धुर परव धन्न । कीन्हीं गजल कौतुक काज, लायक सुणतसु मुख लाज ॥८॥ राजस्थानमें हिन्दीके हस्तलिखित ग्रन्थोंकी खोज, द्वितीय भाग, पृष्ठ १०१। २. वही, पृष्ठ १०३। ३. खरतर जती कवि खेताक, आंखै मौज सुं एताक । संवत् सतरेसे अड़ताल, सावण मास ऋतु वरसाल ॥ वदि परव वाखी तेरी कि, कीनी गजल पढियो ठीकि ॥५५॥ देखिए, वही, पृ० १०३ । ४. भारतीय विद्या वर्ष १, अंक ४, पृ०४३०-३५ ।। ५. राजस्थानमें हिन्दीके हस्तलिखित ग्रन्थोंकी खोज, भाग २, पृ० १००-१।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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