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जैन भक्त कवि : जीवन और साहित्य
रतनपुर के हनुमन्तको नमस्कार किया है। उदयपुरके भी सभी देवी-देवताओंका दरबार, महल, मन्दिर, बाज़ार और
स्मरण किया है । इसके बाद महाराणाके बाग-बगीचोका सुन्दर वर्णन है ।
बावनी
इसकी रचना संवत् १७४३ मगसिर सुदी १५ शुक्रवार के दिन दहरवास नामके गाँवमे हुई थी । इसकी एक प्रति श्री नाहटाजीके पास है । इसमे कुल ६४ पद्य है । कवि खेतलने दहरवासमे 'चौमासा' किया था, उसी मध्यमे इसको रच sor होगा । इसके अन्तिम कुछ परिचयात्मक पद्य देखिए,
"संवत् सत्तर त्रयाल, मास सुदी पक्ष मगस्सिर । तिथि पूनम शुक्रवार, थयी बावनी सुथिर | बारखरी रो बन्ध, कवित्त चौसठ कथन गति । दहरवास चौमास समय, तिणि भया सुखी अति ।
श्री जैनराज सुरिसवर, दयावल्लभ गणि तास सिखि ।
सुप्रसाद तास खेतल, सुकवि लहि जोड़ि पुस्तक लिखि || ६४ || " जैन यती गुण-वर्णन
-कवि खेतलकी यह रचना 'ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह' पृ० २६० पर प्रकाशित हो चुकी है । छोटी-सी रचना में प्रवाह है। जैन यतीके प्रति अत्यधिक श्रद्धानके कारण गुण गिनानेका काम भी सरस हो गया है :
“केइ तो समस्त न्याय ग्रन्थ में दुरस्त देखे,
फारसी में रस्त गुस्त पूजे छत्रपती है । frer करै तप की प्रशस्त धरै योग ध्यान,
हस्त के विलोकवे कुं सामुद्रिक मती है । गृहस्त के वस्त्र के जु ग्राहक हैं,
चुस्त है कला में, हस्त करामात छती है । खेतसी कहत षट् दर्शन में खबरदार,
जैन में जबर्दस्त ऐसे मस्त 'जती' हैं ॥ "
पूज के
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८०. भाऊ ( १७वीं - १८वीं शताब्दीका पूर्वार्ध )
एक जैन कवि थे । इनका जन्म गर्ग गोत्रमे हुआ था । इनके पिताका
१. वही, पृष्ठ १४४-४५ ।