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जैन भक्ति : प्रवृत्तियाँ
मूलक अनुभूति ही रहस्यवादका प्राण है। विचारात्मक अनुभूति दर्शनके क्षेत्रमे प्रतिष्ठित है । अनुभूति दोनो है, किन्तु पहलीमे भाव उत्पन्न होते है और दूसरीमे विचार । डॉ० राधाकृष्णनने विचारात्मक अनुभूतिको अध्यात्मविद्या कहा है। अध्यात्मविद्या वह है, जिसमे मुख्यतः अनुभूतिगत तत्त्वका विचार किया जाये । रहस्यवाद भावात्मक अनुभूति है।'
अनुभूतिका दूसरा नाम अनुभव है । कवि बनारसीदासने अनुभवको परिभाषा लिखी है, "आत्मिक रसका आस्वादन करनेसे जो आनन्द मिलता है, उसे ही अनुभव कहते है ।" उसीको विशद करते हुए उन्होंने कहा, "इसी अनुभवको जगत्के ज्ञानी जन रसायन कहते हैं । इसका आनन्द कामधेनु और चित्रावलिके समान है, इसका स्वाद पंचामृत भोजन-जैसा है। अनुभव मोक्षका साक्षात् मार्ग है ।" पाण्डे रूपचन्दने 'अध्यात्म सवैया' मे लिखा है कि आत्मब्रह्मकी अनुभूतिसे यह चेतन दिव्य प्रकाशसे युक्त हो जाता है । उसमे अनन्तज्ञान प्रकट होता है और यह अपने-आपमे ही लोन होकर परमानन्दका अनुभव करता है।
१. डॉ. राधाकृष्णन, Heart of Hindusthan, अनुवाद-भारतकी अन्तरात्मा,
विश्वम्भरनाथ त्रिपाठी, १९५३, पृ० ६५ । २. वस्तु विचारत ध्यावतै, मन पावै विश्राम ।
रस स्वादत सुख ऊपजे, अनुभौ याको नाम ॥१७॥ बनारसीदास, नाटकसमयसार, जैनग्रन्थरत्नाकर कार्यालय, बम्बई, वि० सं०
१९८६, पृ० १७। . ३. अनुभौके रसको रसायन कहत जग,
अनुभौ अभ्यास यह तीरथकी ठौर है। अनुभौ की केलि यह कामधेनु चित्रावेलि,
____ अनुभौ को स्वाद पंच अमृतको कोर है। देखिए वही, १६वॉ पद्य, पृ० १७-१८ । ४. अनुभौ अभ्यासमै निवास सुध चेतन को,
अनुभौ सरूप सुध बोधको प्रकास है, अनुभौ अनूप उपरहत अनंत ज्ञान,
__ अनुभौ अनीत त्याग ज्ञान सुखरास है। अनुभौ अपार सार आप ही को आप जाने,
आप ही मै व्याप्त दीस जामै जड़ नास है। अनुभौ अरूप है सरूप चिदानंद चंद,
अनुभौ अतीत आठ कर्म स्यो अफास है ॥१॥ अध्यात्म सवैया, मन्दिर बधीचन्दजी, जयपुरकी हस्तलिखित प्रनि ।