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________________ हिन्दी जैन भक्ति-काव्य और कवि देव ब्रह्मचारी केशरीसिंह थे ? और यह रचना क्या केशरीसिंहकृत है ? किन्तु उसके अन्तिम पद्योसे स्पष्ट है कि न तो देव ब्रह्मचारी केशरीसिह थे, और न यह कृति केशरीसिंहकी ही है। लोहाचार्यके जिस पत्ताबन्ध पुनीत सुग्रन्थके आधारपर देवाब्रह्मने इस रचनाका निर्माण किया, उसका अर्थ पण्डित केशरीसिहने समझाया था। पण्डितजी जयपुर नगरमै लश्करके मन्दिरमे रहते थे। देव ब्रह्मचारी भी जयपुरके ही रहनेवाले थे। ब्रह्मचारी होनेके कारण देवाब्रह्मजी स्थान-स्थानपर घूमते थे और वहाँकी जनताको उपदेश देते थे। एक बार उन्होंने चम्पावती नगरीमे चौमासा किया और वहाँको प्रजाको ज्ञानका मार्ग दिखाया। उन्होने एक पद्यमे चम्पावतीका विशद वर्णन किया है। चम्पावतीके बडे देउरेमे एक 'पांडेमाली' रहते थे। उनके १. श्री लोहाचारज मुनि धर्म विनीत हैं । तिन कृत घत्ता बंध सुग्रन्थ पुनीत है ।। ता अनुसार कियो सम्मेद विलास है। देव ब्रह्मचारी जिनवर को दास है ॥ केसरी सिंह जान, रहै लसकरी देह । पण्डित सब गुण जन, याको अर्थ बताइयो । देखिए, वही। २. देवाब्रह्म चौमासो छायो, नगरी में सुष पाय । सब पंचां को ग्यांन सुणायो, समकति व्रत अधिकाय ।। देखिए, महावीरजी अतिशय तीर्थ क्षेत्रके एक प्राचीन गुटकेमें संकलित देवाब्रह्मजीके पद और विनतियाँ। ३. जंबूदोप भरतषेत्र मै, देस ढुंढाहड सार । नगरी बसै चंपावतो जी, देवपुरी गुणधार जी ॥ राजनीति पाल सही जी प्रजा सुषी घर बारि । उत्तिम पुरिष सदा बसै जो पूजा दानि करारि जी । जिन मंदिर तो बड़ो बडयो जी, कोटि बीचि बिसतारि । गढ के बाहिर बसती बिचे, फुनि जिन मन्दिर सार जी ॥ दोय गो विराजे सदा जी, प्रीति भाव सुषकार । परम ध्यान साधैं सबै जी, धरि धरि मंगलाचार जी । ऐसी नगरी देषि के जी, तपसी आवै साध । सब पंचां की ग्याण सुनावै, सुरग मुकति करतार जी ॥ वही, पब १-५॥
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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