SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 319
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन मक्त कवि : जीवन और साहित्य २९१ वचनकोश __ इसकी एक प्रति 'सटका कुंचा दिल्ली के जैन मन्दिरके शास्त्र भण्डारमै मौजूद है। इसकी रचना वि० सं० १७३७में हुई थी। यह प्रति वि०म० १८८३ को लिखी हुई है । इसमे १३० पृष्ट है । इसकी दूसरी प्रति जयपुरके बड़े मन्दिरके वेष्टन नं० १६४१ मे निवद्ध है। यह प्रति बिलकुल शुद्ध एवं पूर्ण है। इममे १५७ पृष्ठ है। इसपर लेखनकाल स० १८.३ पड़ा हुआ है। यह अन्य जैन-सिद्धान्तका विषय है, किन्नु हिन्दी-पद्योमे लिखा गया है। उद्योम सरसता है। प्रश्नोत्तर-श्रावकाचार ___ इसकी प्रति दिल्लीके पंचायती मन्दिरके ग्रन्यभण्डारमं मौजूद है। इसका रचनाकाल मं० १७४७ और लेखनकाल सं० १९१७ में दिया हुआ है। इसमे कुल १०३ पृष्ठ है। इसको दूसरी प्रति जयपुरमे लगकर जोक मन्दिरके वेष्टन नं० १०८ मे निबद्ध है। इसपर भी रचनाकाल सं० १३४७ पड़ा है, किन्तु लेखनकाल सं० १९४१ है। यह प्रतिलिपि नासरोवा ग्रामके दीवान धनकुँअरजी तेरापन्थीने लिखवायी थी। इसमे पृष्ठसंख्या १४५ है। इस ग्रन्थका विषय जैन धर्मानुसार श्रावकोके आचारसे सम्बन्धित है। किन्तु हिन्दी-पद्यमे लिखा गया है और उसने अनेक स्थलोंपर साहित्यिक आनन्द सन्निहिन है। पाण्डवपुराण यह बुलाकीदासका प्रसिद्ध महाकाव्य है । इसमे जैन-परम्परानुमोदित पाण्डवोंकी कथा है । इसकी रचना वि० सं० १७५४ मे दिल्लीमे रहकर को गयी थी। वहां उनकी मां जैनुलदे या जैनीने शुभचन्द्र भट्टारकका संस्कृत पाण्डवपुराण पढ़ा और अपने पुत्रको हिन्दीमै रचनेकी आज्ञा दो।' उन्हीने उस अज्ञाको पूरा किया। इस काव्यमे ५५०० पद्य हैं । उनको काव्य-शक्तिपर अपना मत अभिव्यक्त करते हुए प्रसिद्ध पण्डिज्ञ नाथूरामजो प्रेमीने लिखा है, "रचना मध्यम श्रेणोको है, पर कही-कही बहुत अच्छी है। कविमे प्रतिभा है, पर वह मूलग्रन्थ १. ताको अर्थ विचारक, भारत भाषा नाम । कथा पांडु सुन पंच को, कीजै बहु अभिराम ॥ सुगम अर्थ श्रावक सबै, भने भनाव जाहि । ऐमो रचिक प्रथम हो, मोहि सुनावी ताहि ।। पाण्डवपुराण प्रशस्ति, दिल्लीवाली प्रति ।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy