SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 318
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २९० हिन्दी जैन भक्ति-काव्य और कवि ७५. बुलाकीदास (वि० सं० १७३७-१७५४ ) बुलाकोदासकी वंश-परम्परा इस प्रकार थी : साहु अमरसी, प्रेमचन्द, श्रमणदाम, नन्दलाल और बुलाकीदाम । ये मूलतः बयानाके रहनेवाले थे। किन्तु लाला श्रमणदास बयाना छोड़कर आगरेमे रहने लगे थे। उनका पुत्र नन्दलाल योग्य, स्वस्थ और रूपसम्पन्न था, जिसपर मोहित होकर प्रसिद्ध पण्डित हेमराजने अपनी एक मात्र पुत्री 'जैनी' ब्याह दी थी। जैनी रूप और शीलमे अनुपम तथा सरस्वतीको तो साक्षात् अवतार हो थी। उसीके गर्भसे बुलाकीदासका जन्म हुआ। विदुपी मांकी देख-रेखमे बुलाकीदासका पालन-पोषण हुआ। वे विद्वान् भी बन सके और महाकवि भी। उनका कुल अग्रवाल और गोत्र गोयल था। __'नागरी प्रचारिणी पत्रिका के सम्पादकोंने उनके द्वारा रचित 'श्रीमन्महाशोलाभरणभूषित' नामके ग्रन्थके आधारपर लिखा है, "वे मूलरूपसे बयानाके रहनेवाले थे, किन्तु अन्न-पानके संयोगसे जहानाबादमे आकर रहने लगे, जहाँ औरंगजेबके शासनमे सब प्रजा सुखी थी, उनके गुरुका नाम रतन था, जो गढ़ गोपाचलके रहनेवाले थे।" किन्तु 'श्रीमन्महाशीलाभरणभूषित' उनकी किसी रचनाका नाम नहीं है, अपितु अपनी माताकी स्मृति रक्षाके लिए उन्होंने पाण्डवपुराणके प्रत्येक सर्गके अन्तमे 'श्रीमन्महाशीलाभरणभूषितायां जैनीनामांकितायां भारतभाषाया' लिखा है। उन्होने पाण्डवपुराणकी रचना अपनी माँकी आज्ञासे ही की थी। जहाँतक जहानाबादका सम्बन्ध है, हो सकता है कि उनके पूर्वज वहां भी कुछ दिनों रहे हों। बुलाकीदासने 'वचनकोश', 'प्रश्नोत्तरश्रावकाचार' 'पाण्डवपुराणऔर 'जैन चौबीसी' की रचना की थी। इनमे पूर्णतया भक्तिसे सम्बन्धित 'जैन चौबीसी' ही है, किन्तु अवशिष्ट तीन ग्रन्योमें भी भक्तिके अनेकों स्थल है। कही जिनेन्द्रको स्तुतियां, कहीं जिन मन्दिरोंका सानिशय वर्णन और कही भक्तोंकी चमत्कारपूर्ण कहानियां है। यहाँ सभी ग्रन्थोंका संक्षेपमे परिचय दिया जा रहा है : १.५० प्रेमी, हिन्दी जैन साहित्यका इतिहास, बम्बई, १९१७ ई०, पृष्ठ ६५ । २. “वतन बुलाकीदास को, मूल वयोना जान। और रतन गुरुदेव को, गढ़ गोपाचल थान | अन्न पान संजोग तें नगर जहानांवाद"नगर जहानाबादमे साहिब औरंग साहि, विधिना तिस छत्तर दयौ, रहे प्रजा सुख माहि।" देखिए का ना० प्र० पत्रिकाके हस्तलिखित हिन्दी ग्रन्थोंका १५वाँ त्रैवार्षिक विवरण।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy