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जैन भक्त कवि : जीवन और साहित्य
"चाल्यो सुरग तदा वियति मागे विमाने । हाव भाव सविलास करी करं नृत्य सु ताने ।। धुमि धुम धुनिये सार उदार ज महल बज्जे । हमि हमि शब्दे चंग फार दों दल बहु गज्जे || झिकिटि झिकिटि सुस्वरे करि धुग्धरी धम्म के बहु तदा | विद्यासागर कहे सुणी सुर किल्याणक कर यदा ||१५||”
'सप्न व्यमन सवैया' मे सात व्यसनोको छोड़ने की बात कही गयी है । इसमें कुल सात पद्य है । इसका भी रचनाकाल वह ही है । सवैयांका प्रयोग किया गया है ।
' दर्शनाष्टक' भगवान् जिनेन्द्र के दर्शनोसे सम्बन्धित है। इसमें बताया गया है कि भगवान्के दर्शन करने मात्रसे ही यह जीव भव समुद्रसे पार हो जाता है । इसमें ११ पद्य है । रचना - काल वह ही है ।
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'विषापहार छप्पय ' सबसे बड़ा काव्य है । इसमें ४० पद्य हैं । यह छप्पयोंमें लिखा गया है । इसका रचनाकाल भी अठारहवीं शताब्दीका प्रथम पाद ही है । इसमे भगवान् जिनेन्द्रको भक्तिसे इहलौकिक और पारलौकिक दुःखोंके छूट जानेका विवेचन है । एक पद्यमें जिनेन्द्रका रूप इस प्रकार अंकित किया है - " शब्द शरीरातीत स्वामि तु हे वृषभेश्वर, रूप गंध रस रहित प्रभु तुं श्री जगदीश्वर | देह गंध सरूप शब्द ना ज्ञान ने जांणे, लोक त्रि परमाण मांण जिन ज्ञाने बखांणे । अन्य लोक अभिमान थी समरे नहीं तुझ ने कदा, वर विद्यासागर व तुझे गुण समरु हु सदा ॥ ३४॥” 'भूपाल स्तोत्र छप्पय' मे कुल २७ छप्पय हैं । इसमें चौबीस तीर्थंकरोंकी स्तुति की गयी है । इसकी रचना सं० १७३० आश्विनमास सुदी सप्तमी गुरुवार के दिन कारंजामे हुई थी । एक पद्यमे भगवान् के दर्शनका आनन्द देखिए,
"निरख्यो नयने आज रसायन मंदिर सुखकर, नव विधान तु स्थान श्राज मिनि रख्यो दुखहर | मिद्ध सुरस तु सदन आज में नयने निरख्यौ, चितामणि मुझे आज निरख्यु मुझ है यहु हरख्यो । जिनगृह निरखे मैं सहु आज में निरख्या निरमला, विद्यासागर कहें जिन निरंखे पातिग गल्या ॥२५॥"
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