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हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि
'पार्श्वनाथ स्तोत्र' प्रसिद्ध हैं । इसमे संगीतकी लय है और भावोंका प्रवाह | वह भगवान् दुःखियोंके दुःखको हरनेवाला, सुख देनेवाला और सेवकोंके हृदय में महान् आनन्दको वर्षा करनेवाला है। उसके सेवको के पास भय तो फटकता हो नहीं । वह भगवान् दरिद्रोंको धन, अपुत्रोंको पुत्र भी देता है । देखिए, "दुखी दुःखहर्त्ता सुखी सुक्खकर्त्ता । सदा सेवकों को महानन्द भर्त्ता ॥ हरे यक्ष राक्षस भूतं पिशाचं । विषं डांकिनो विघ्न के भय भवाचं ॥ ३॥ दरिद्वीन कों द्रव्य के दान दीने ।
पुत्रीन को तू मले पुत्र कीने ॥ महासंकटों से निकारै विधाता । सबै संपदा सर्व को देहि दाता ॥ ४ ॥ "
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आरती साहित्य
द्यानतरायको पाँच आरतियाँ 'जिनवाणी संग्रह 'मे प्रकाशित हो चुकी है । ये पाँचों क्रमशः 'इह विधि मंगल आरति कीजै', 'आरति श्री जिनराज तिहारी', 'आरति कीजै श्री मुनिराज की', 'करों आरती वर्द्धमान की', और 'मंगल आरती आतमराम' से प्रारम्भ होती है ।
प्रथम आरती पंचपरमेष्ठीकी भक्ति में रची गयी है । वे भव-समुद्रसे तारनेवाले, भव-फेरीको मिटानेवाले, जन्म-मरणके दुःखोंको दूर करनेवाले, पापोंको हटानेवाले और कुमतिका विनाश करनेवाले हैं ।
द्वितीय आरती श्री जिनराजकी आरती है, जो कर्मोका दलन करनेवाले और सन्तोंके हितकारी है । वह भगवान् ही सब देवोंका देव है और सुर-नर-असुर सभी उसकी सेवा करते है । जो कोई उसकी शरणमें गया वह भव- समुद्रसे तिर गया । भगवान्के गुण इतने अधिक हैं कि गणधर भी पार नहीं पा पाते। वह
भगवान् करुणाका सागर है और अपने भक्तको सदैव सुख देता है,
"सुर नर असुर करत तुम तुमहीं सब देवन के आरति श्री जिनराज करम दलन संतन भव भय मीत शरन ते परमारथ पंथ
१. बृहज्जनवाणी संग्रह, पृष्ठ ५१७ १
सेवा ।
देवा ॥
तिहारी ।
हितकारी ||
जे आये । लगाये ॥