SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 307
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन भक्त कवि : जीवन और साहित्य २७९ उस समय आगरेमें मानसिंह और बिहारीदास जैन धर्म के घुरन्धर विद्वान् कहे जाते थे । वे आध्यात्मिक चर्चाओंके केन्द्र थे । 'मानसिंहकी सैली' तो अत्यधिक प्रसिद्ध थी । द्यानतराय उनसे बहुत प्रभावित हुए, और दोनों ही को अपना गुरु बनाया । इस भाँति वि० सं० १७४६ में उन्होंने जैनधर्मसम्बन्धी सुदृढ़ निष्ठा प्राप्त की। यह निष्ठा रुकी नहीं, आगे चलकर जैन-भक्तिके रूपमें विकसित हुई । द्याननरायने अनेकानेक जैन पूजाओंका निर्माण किया । उन्होंने आध्यात्मिक पदोंकी भी रचना को, जो 'धर्मविलास' में संकलित हैं। वैसे तो जैन - भक्तिकी परम्परा निरन्तर चली आ रही थी, किन्तु हिन्दी पूजाओंके रूपमें ऐसा सरल योगदान, सिवा द्यानतरायके कोई दूसरा न दे सका था । उन्होंने वि० सं० १७७७ में शिखरजीकी यात्रा भी की थी। वि० सं० १७८० मे वे दिल्लीमे आकर रहने लगे । वहाँ पण्डित सुखानन्दजी धर्म- चर्चाओके जीवन्त केन्द्र थे । उनके संसर्गसे कविका भक्ति प्रवण हृदय उत्तरोत्तर विकसित होता गया, और आज वे अपनी रचनाओंमें अमर है । धर्मविलास' यह द्यानतरायकी समूची रचनाओंका संकलन है। इसकी समाप्ति वि० सं० १७८० में हुई थी । उस समय कवि महोदय आगरेसे दिल्लीमें आकर रहने लगे थे । इसमें केवल पदोंकी ही संख्या ३३३ हैं, कुछ पूजाएं हैं और अन्य ४५ विषयोंपर भी लिखा गया है । ग्रन्थके साथ विस्तृत प्रशस्ति भी निबद्ध है, जिससे तत्कालीन आगरेकी सामाजिक परिस्थितिका अच्छा परिचय मिलता है ।" देने वाले फिरि जाहि मिले तो उधार नाहि साझी मिले चोर घन आवै नाहि लहना ॥ कोऊ पूत ज्वारी भयो घर माहिं सुत थयो, एक पूत मरि गयौ ताको दुख सहना । पुत्री वर जोग भई व्याही सुना जम लई, एते दुःख सुख जाने तिसे कहा कहना ॥ धर्मविलास, कलकत्ता, अन्तिम प्रशस्ति । १. कुछ अंशोंको छोड़कर शेषका प्रकाशन जिनवाणी प्रचारक कार्यालय, कलकत्तासेहो चुका है। २. इधै कोट उ बाग जमना बहै है बीच, पच्छिम सों पूरब लों असीम प्रवाह सौं ।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy