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________________ हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि अहिक्षेत्रके पार्श्वप्रभुकी स्तुति करते-करते तो भक्त कवि जैसे भावोंके आधिक्यमे बह ही गया है, "आनंद को कंद किंधों पूनम को चंद किधों, देखिए दिनंद ऐसो नंद अश्वसेन को । करम को हरै फंद भ्रम को करै निकंद, चूरै दुख द्वन्द्व सुख पूरै महा चैन को || सेवत सुरिंद गुन गावत नरिद मैया, ध्यावत मुनिंद तेहू पावें सुख ऐन को । ऐसो जिनचंद करे छिन में सुछंद सुतौ, २७४ ऐक्षित को इंद पार्श्व पूजों प्रभु जैन को ||२०|| " " 'भैया' भगवतीदास और एक किंवदन्ती कहा जाता है कि भैया भगवतीदास, दादूपन्थी बाबा सुन्दरदास और रसिक शिरोमणि श्री केशवदासने एक ही गुरुसे शिक्षा पायी थी। तीनों गुरुभाई थे । केशवदासने अपनी रसिकप्रियाकी एक-एक प्रति दोनों साथियोंके पास भेजी और दोनों ही ने उसकी कड़ी आलोचना की । सुन्दरदासजी द्वारा की गयी उसकी निन्दा 'सुन्दर विलास' में निबद्ध है। भैयाने भी एक छन्द बनाया और उसके मुखपृष्ठपर लिखकर वापस कर दिया। वह छन्द इस प्रकार है, "बड़ी नीति लघुनीत करत है, वाय सरत बदबोय मरी । फोड़ा आदि फुनगुणी मंडित, सकल देह मनु रोग दरी ॥ शोणित हाड़ मांसमय भूरत, वापर रीशत घरी घरी । ऐसी नार निरख कर केशव, रसिक प्रिया तुम कहा करी ||१९|| १३ इस भाँति 'भैया', केशवदास के समकालीन थे । किन्तु केशवदासका स्वर्गवास वि० सं० १६७० में हो गया था। आचार्य रामचन्द्र शुक्लके अनुसार, उनका जन्म सं० १६१२ और मृत्यु सं० १६७४ के आस-पास हुई । रसिकप्रियाकी रचना वि० सं० १६४८ में हुई थी। इससे प्रमाणित है कि भैयाका जन्म वि० सं० १६४८ से कमसे कम २५ वर्ष पूर्व तो हुआ ही होगा। तभी तो १. वही, अहिक्षित पार्श्वनाथकी स्तुति, पृष्ठ १६२ | २. ब्रह्मविलास, सुपन्थ कुपन्थ पचीसिका, पृष्ठ १८४ ३. पण्डित रामचन्द्र शुक्लकृत, हिन्दी साहित्यका इतिहास, संशोधित और परिवर्धित संस्करण, १६६७ वि० सं०, पृष्ठ २५० । ४. वही, पृष्ठ २५७ ॥
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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