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________________ जैन मक कवि : जीवन और साहित्य तेरो नाम कल्प वृक्ष इच्छा को न राखे उर, तेरो नाम कामधेनु कामना हरत है। तेरो नाम चिन्तामन चिन्ता को न राखे पास, तेरो नाम पारस सो दारिद डरत है। तेरो नाम अमृत पियेते जरा रोग जाय, तेरो नाम सुखमल दुःख को दरत है। तेरो नाम वीतराग धरै उर वीतरागी, भव्य तोहि पाय भवसागर तरत है ॥३॥ णमोकार मन्त्रके अपनेसे एक ओर तो पाप और भूत-प्रेतादि भाग जाते हैं, तो दूसरी ओर विविध प्रकारके वैभव उपलब्ध होते है। अतः णमोकार मन्त्र का प्रतिदिन ध्यान करना चाहिए, "जहां जपहि नवकार, तहां अघ कैसे आवें। जहां जपहि नवकार, तहां ब्यंतर भज जावें ॥ जहां जपहिं नवकार, तहां सुख संपति होई । जहां जपहिं नवकार, तहां दुख रहै न कोई ॥ नवकार जपत नव निधि मिले, सुख समूह आ सरब । सो महामन्त्र शुमध्यानसों, 'मैया' नित जपबो करब ॥१७॥"* सम्यक्त्वकी जैन शास्त्रोंमें बहुत अधिक महिमा है। सम्यक्त्व धारण करनेवाले सन्त सदैव पूजे जाते रहे है। यहाँ भी एक कवित्तमें उनकी स्तुति की गयी है, "स्वरूप रिझवारे से सुगुण मतवारे से, सुधा के सुधारे से सुप्राण दयावंत हैं। सुबुद्धि के अथाह से सुरिद्धपातशाह से, सुमन के सनाह से महावडे महंत हैं। सुध्यान के धरैया से सुज्ञान के करैया से, सुप्राण परखैया से शकती अनंत है। सबै संघनायक से सबै बोललायक से, सबै सुखदायक से सम्यक के संत है ॥१०॥" १.बही, सुपन्थ कुपन्य पीसिका, पृ०१००। २. वहीं, फुटकर विषय, पृष्ठ २७७ । ३. वही, पुण्य पर्चासिका, पृष्ठ ४ ।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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