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________________ २७० हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि प्राजल तथा अर्थबोधक है। कठिन रूपक भी आसान प्रतीत होते है। भैयाम आध्यात्मिकता और भक्तिका समन्वय था। वे आध्यात्मिकताके शिखरपर चढ़े थे। उन्होने भक्ति-मरोवरमे स्नान भी किया था। अध्यात्ममूला भक्तिके जैसे दृष्टान्त भैयाको रचनाओमे उपलब्ध होते है, अन्य किसीमे नही। कवि बनारसीदासको भक्ति भी ऐसी ही थी। 'नाटक समयसार' और 'विलास'की अनेक रचनाएं इसका निदर्शन है । किन्तु बनारसी-काव्य अथसे इति तक प्रसाद गुणको ही लेकर चला है. जब कि भैयामे ओज अधिक है । उनका 'ब्रह्मविलास' ओजसे भरा सिन्दूर-घट है। बनारसीका 'शान्तरस' शान्तिकी गोदमे पनपा, जब कि भैयाका वीरताके प्रभंजनमे जनमा, पला और पुष्ट हुआ। अध्यात्म और भक्तिके क्षेत्रमे वीररमका प्रयोग भैयाकी अपनी विशेषता थी। ब्रह्म-विलास _ 'ब्रह्म-विलाम' की रचना वि०सं० १७५५ वैशाख शुक्ला तृतीया रविवारके दिन समाप्त हुई थी। इसका नाम 'ब्रह्म-विलास' स्वयं भैया भगवतीदासका ही दिया हुआ है। इसका प्रकाशन बहुत पहले सन् १९०३ मे जैन ग्रन्यरत्नाकर कार्यालय बम्बईसे हुआ था। इसका द्वितीय सस्करण भी वहाँसे ही सन् १९२६ मे निकल चुका है। इसमें 'भैया'को रत्री हुई ६७ रचनाओका संकलन है। 'द्रव्य संग्रह नामको रचना 'भैया'के मित्र मानसिंहकी रची हुई है । 'चेतनकर्मचरित्र', 'बावीस परीपह', 'मूढाष्टक', 'वैराग्यपचीसिका', 'पंचेन्द्रिय संवाद', 'मनबत्तीसी', 'स्वप्नबत्तीसी' और 'परमात्मशतक' तथा फुटकल कवित्तोमे, आध्यात्मिक विचारोका सरस ढंगसे भावोन्मेष हुआ है। 'जिनपूजाष्टक', 'चतुर्विंशति जिन स्तुति', 'परमात्माकी जयमाल', 'तीर्थंकर-जयमाला', 'मुनिराजजयमाला', 'अहिक्षिति पार्श्वनाथ स्तुति', 'जिनगुणमाला', 'सिज्झाय और परमेष्ठी नमस्कार', 'निर्वाण काण्ड भाषा', 'नन्दीश्वरको जयमाला', 'सुबुद्धि-चौबीसी', 'अकृत्रिम चैत्यालयकी जयमाला', 'परमात्मछत्तीसी,' 'चतुर्विशति जयमाला', और फुटकल विषय भक्तिरससे सम्बन्धित है । १. सनन मत्रह पंच पचास। ऋतु वसंन वैशाख सुमान । शुक्लपक्ष तृतिया रविवार । संघ चतुर्विध को जयकार ॥ ३०५ २. तिहूँ काल के जिन भगवान । वंदन करों जोरि जुग पान । भया नाम भगवतीदास । प्रगट होहु तसु ब्रह्म विलास ॥१०॥ वही, पृष्ठ ३०५।
SR No.010193
Book TitleHindi Jain Bhakti Kavya aur Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsagar Jain, Kaka Kalelkar
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size41 MB
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