________________
जैन भक्त कवि : जीवन भौर साहित्य
२६९
थे । उनके लिखे हुए लगभग २५ काव्य-ग्रन्थोका पता चला है, उनमे 'लघु सीता सनु', 'अनेकार्थ नाममाला' और 'मृगाकलेखा - चरित' से अधिकांश विद्वान् परिचित है । 'मृगांक लेखाचरित' अपभ्रंशकी रचना है। चौथे भगवतीदास वे है, जिनका उल्लेख पं० हीरानन्दजीने अपने ‘पंचास्तिकाय' के हिन्दी अनुवादमे किया है। श्री नाथूरामजी प्रेमीका अनुमान है कि ये ही 'ब्रह्म-विलास' के कर्त्ता भैया भगवतीदास है । उनका साहित्यिक काल संवत् १७३७ से १७५५ माना जाता है ।
भैया भगवतीदास आगरा के रहनेवाले थे । उस समय औरंगजेबका राज्य था, जिसकी आज्ञा अभंग रूपसे बहती थी । नृपतिकी उपकार दृष्टिके कारण इति-भीति कहीपर भी व्याप्त नही थी। भगवतोदासका जन्म ओसवाल कुलमे हुआ था । उनका गोत्र 'कटारिया' कहा जाता है । उनके पितामहका नाम दथरथ साहु था, जो आगरेके वैभव-सम्पन्न पुरुषोंमे से एक थे। वे धर्मात्मा और पुण्यवन्त भी थे । उनके पुत्रका नाम लालजी था। ये हो भैया भगवतीदास के पिता थे। भैयाको धार्मिकता, भक्ति और लक्ष्मी जन्मसे ही मिली थी । उन्होंने भो इस परम्परागत देनको भलीभांति निभाया। उनका समय आध्यात्मिक ग्रन्थोके पठन-पाठन और गृहस्थोचित पट्कर्मोके पालनमे व्यतीत होता था । 'भैया' उनका उपनाम था । प्रायः उसीका प्रयोग है। कही कही 'भविक' और 'दासकिशोर' का भी प्रयोग हुआ है ।
I
५
भैया एक विद्वान् व्यक्ति थे । प्राकृत और संस्कृतपर तो उनका अटूट अधिकार था । हिन्दी, गुजराती और बंगला भी विशेष गति थी। इसके साथ-साथ उन्हे उर्दू और फारसीका ज्ञान था । उनकी कविताएँ इस तथ्यका निदर्शन है । मारवाड़ी शब्दोका प्रयोग भी अधिक हुआ है । ओसवाल जाति मारवाड़ देशमे उत्पन्न हुई, अतः उसका प्रभाव स्वाभाविक ही हैं । सबसे बड़ी विशेषता है कि उनकी भाषा
१. पं० नाथूराम प्रेमी, हिन्दी जैन साहित्यका इतिहास, बन्बई, पृष्ठ ५३ |
२. ब्रह्मविलास में वि० सं० १७३१ से १७५५ तककी ही रचनाएं संगृहीत है । ३. जम्बूद्वीप सु भारतवर्ष । तामे आर्य क्षेत्र उत्कर्ष ।
तहाँ उग्रसेनपुर थान, नगर आगरा नाम प्रधान ॥ नृपति तहाँ राजे औरंग । जाकी आज्ञा बहै अभंग | इति-भीति व्यापै नहि कोय, यह उपकार नृपति को होय ॥
भैया भगवतीदास, ब्रह्मविलास, जैन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय, बम्बई, द्वितीय
संस्करण, सन् १९२६ ई०, ग्रन्थकर्त्तापरिचय, पृष्ठ ३०५, पद्य १, ३ ।
४. वही, पद्य, ४, ५, पृष्ठ ३०५ ।
५. वही, पद्य ६, पृष्ठ ३०५ ।