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हिन्दी जैन भक्ति-काव्य और कवि
जिनरंग एक उदार कवि थे। उन्होने धर्मके नामपर कौमियतको प्रश्रय नही दिया । उनका अभिमत था कि धर्म अविरोधी होता है। यदि उसमे दूसरे धर्मसे विरोध है, तो कहीं-न-कहीं कमी अवश्य है । शैव जैन और मुसलिम धर्मोमे विरोध नहीं है। तीनोंके मिलनेसे ही यह जीव भवसमुद्रके पार उतर सकता है,
“शैवगति जैनी दया, मुसलमान इकतार ।
जिनरंग जो तीनों मिलै, तो जीउ उतरै पार ॥३७॥" चतुर्विशति जिनस्तोत्र
चौबीस तीर्थकरोकी भक्तिमे इसका निर्माण हुआ है। इसकी प्रति जयपुरके श्री बधीचन्दजीके मन्दिरमे स्थित गुटका नं० ९२ मे सकलित है। उसपर रचना और लेखनकाल आदि कुछ भी दिया हुआ नहीं है । चिन्तामणि पार्श्वनाथ स्तवन ___ इसमें यह बताया गया है कि भगवान् पार्श्वनाथकी भक्तिसे सब मनोकामनाएं पूरी हो जाती है। उनका स्तवन 'चिन्तामणि' के समान फलदायी होता है। इसकी भी एक प्रति जयपुरके श्री बधीचन्दजीके मन्दिरमे रखे हुए गुटका नं० ९२ मे लिपिबद्ध है । इसमें कुल १५ पद्य हैं। नवतत्त्व बाला स्तवन __ यह श्राविका कनकादेवीके लिए रचा गया था। इसमे नवतत्त्वोंका विवेचन है । इसका प्रकाशन दिल्लीसे हो चुका है।
७१. भैया भगवतीदास - (वि० सं० १७३१-१७५५)
जैन साहित्यमे भगवतीदास नामके चार विद्वान् हुए है, जिनमे पहले ब्रह्म चारी भगवतीदास थे। उनका उल्लेख पाण्डे जिनदासने 'जम्बूस्वामीचरित्र' में किया है। ये पाण्डे जिनदासके गुरु थे। दूसरे "भगौतीदास' बनारसीदासजीके पंच महापुरुषों में से एक थे, जिनकी प्रेरणासे 'नाटक समयसार' की रचना हुई। तीसरे भगवतीदास भट्टारक महेन्द्रसेनके शिष्य थे, किन्तु वे भट्टारक न होकर 'पण्डित' विशेषणसे विख्यात थे। उनका जन्म अम्बाला जिलेके बूढ़िया गांवमे हुआ था। उनका कुल अग्रवाल और गोत्र बंसल था। वे दिल्लीमे आकर रहने लगे
१. अनेकान्त, वर्ष ७, किरण ५-६, पृष्ठ ५४-५५ ।